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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन देहधारियों के सत्-असत् लक्षणों से युक्त और शुभ-अशुभ आकार या युक्त आकृति संस्थान है। इनके अवयवों का सन्निवेश छ: प्रकार का होता है। अतः औदारिकादि शरीरी जीवों के द्वारा कर्मोदय से शुभ-अशुभ लक्षणों से युक्त भिन्न-भिन्न आकृतियाँ ग्रहण करना संस्थान कहलाता है। संस्थान भेद
समचतुरस्रं न्यग्रोधसादिवामनकुब्जहुंडानि ।
संस्थानान्यंगे स्युः प्राक्कर्मविपाकतोऽसुमताम् ।। आगम में संस्थान के समचतुरन आदि छह भेद प्रसिद्ध हैं, जिन्हें आचार्य पुष्पदन्त भूतबलि, भट्ट अकलंक' और उपाध्याय विनयविजय आदि विद्वान् अंगीकार करते हैं। जबकि पूज्यपादाचार्य देवनन्दी संस्थान के इत्थं और अनित्थं दो भेद स्वीकार करते हैं।२६२ द्रव्यसंग्रह ग्रन्थ के टीकाकार भी संस्थान के दो भेद मानते हैं जिनके नाम हैं- व्यक्त और अव्यक्त।२६३: (1) समचतुरस्र संस्थान- सब ओर से शोभन अवयवों वाला शरीर समचतुरस्र संस्थान कहलाता है। इसका तात्पर्य है कि जिस शरीर के सभी अंग अपने-अपने प्रमाण के अनुसार होते हैं
और दोनों हाथों और दोनों पैरों के कोण पद्मासन से बैठने पर समान होते हैं वह शरीर सब ओर से शोभन अवयवों वाला समचतुरस्र संस्थान कहलाता है- “आद्यं चतुरलं संस्थानं सर्वतः शुभम्। अकलंक के तत्त्वार्थराजवार्तिक और आचार्य पुष्पदन्त भूतबलि के षट्खण्डागम'६ में समचतुरस्रसंस्थान से सम्बन्धित यही अभिप्राय उपलब्ध होता है। (2) न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान- न्यग्रोध अर्थात् वटवृक्ष और परिमंडल का अर्थ है सब
ओर का मण्डल। न्यग्रोध के परिमण्डल के समान जिस शरीर के अवयवों की रचना होती है वह न्यग्रोध परिमंडल शरीर संस्थान है। वटवृक्ष जिस प्रकार नीचे से छोटा और ऊपर से विशाल होता है उसी प्रकार नाभि से नीचे लघुप्रदेशों वाले और नाभि से ऊपर के भारी प्रदेशों वाले शरीरावयव की रचना न्यग्रोधपरिमण्डल संज्ञा से अभिहित होती है।२६० (3) सादि संस्थान- न्यग्रोध से ठीक विपरीत ऊपर से सूक्ष्म और नीचे से स्थूल वल्मीक या शाल्मलि वृक्ष के समान शरीर की रचना सादि संस्थान है। इस संस्थान वाला शरीर नीचे के भाग में शुभ एवं ऊपर से अशुभ लक्षणों से युक्त होता है। इस तीसरे संस्थान के नाम में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत प्राप्त होते हैं। षट्खण्डागम में यह 'स्वाति', पंचसंग्रह की टीका में 'साचि'
और लोकप्रकाश' में 'सादि' संज्ञा से अभिहित है। (4) वामन संस्थान- शरीर के सभी अंग और उपांगों का सामान्य आकार से छोटा होना 'वामन