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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन योनि संख्या प्ररूपणा
योनि और कुल का निकट सम्बन्ध होने से योनिद्वार के अन्तर्गत ही योनि संख्या और कुल संख्या द्वार को सम्मिलित कर यहाँ उल्लेख किया गया है।
सामान्य तौर पर योनियों के नौ भेद किए जाते हैं, परन्तु विस्तार की अपेक्षा से ८४ लाख भेद भी स्वीकृत हैं। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय, साधारण वनस्पतिकाय में प्रत्येक की सात लाख; प्रत्येक वनस्पतिकाय की दस लाख; द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय प्रत्येक की दो-दो लाख; देव, नारकी व तिर्यंच पंचेन्द्रिय प्रत्येक की चार लाख और मनुष्य की चौदह लाख योनियाँ हैं। अतः सब मिलाकर कुल चौरासी लाख योनियाँ होती हैं। वैसे तो लोक में अनन्त जीव हैं इसलिए व्यक्ति भेद से अनन्त योनियाँ सम्भव हैं, परन्तु समान वर्ण, गंध, रस, स्पर्शादि से युक्त बहुत सी योनियों की सामान्य जाति वाली एक योनि गिनाई जाती है, अतः सामान्य रूप से जीवों की चौरासी लाख योनियाँ स्वीकार की गई है। आचारांग सूत्र के वृत्तिकार ने ८४ लाख योनियों की शुभ-अशुभ अपेक्षा से एक नयी दृष्टि प्रदान की है, जिसे उपाध्याय विनयविजय ने लोकप्रकाश में उद्धृत किया है तदनुसार असंख्यात आयुष्य वाले जाति सम्पन्न मनुष्यों की और संख्यात आयुष्य वाले चक्रवर्ती तथा तीर्थंकर नामगोत्र वालों की शुभ योनि और अन्यों की अशुभ योनि होती है। किल्विष देव की अशुभ व अन्य देवों की शुभयोनि हैं। तियेच पंचेन्द्रिय में अश्वरत्न तथा गजरत्न शुभ एवं शेष अशुभ हैं। इसी प्रकार उत्तम वर्ण वाले एकेन्द्रिय रत्न, हीरा, माणक, मोती, पन्नादि शुभ हैं।१० कुल संख्या प्ररूपणा
योनि के आधार पर कुल उत्पन्न होता है।" एक योनि में नाना प्रकार की जाति वाले जीवों के अनेक कुल होते हैं अतः जाति भेद को भी 'कुल' कहा गया है। उदाहरणार्थ- आर्द्रतायुक्त छाने (गोबर का कण्डा) के पिंड में कृमि, कीड़े, बिच्छु आदि अनेक प्रकार के क्षुद्र प्राणियों के अनेक कुल होते हैं। फिर भी सामान्य रूप से कुलों की संख्या एक करोड़ सत्तानवें लाख पचास हजार स्वीकार की गई है, जिसका विवेचन निम्नानुसार हैएकेन्द्रिय जीव- एकेन्द्रिय जीवों की कुल संख्या में मतवैभिन्य मिलता है। लोकप्रकाश, मूलाचार और गोम्मटसार में पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की कुल संख्या अनुक्रम से बाईस लाख करोड़, सात लाख करोड़, तीन लाख करोड़, सात लाख करोड़ और अट्ठाईस लाख करोड़ गिनाई गई है। आचारांग वृत्ति के अनुसार एकेन्द्रिय की कुल संख्या बत्तीस लाख कही गई है वहीं जीवाभिगम सूत्र में मात्र पुष्प की कुल संख्या १६ लाख कही गई