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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन २. चेतनता की अपेक्षा से- सचित्त, अचित्त, मिश्रा ३. आवरण की अपेक्षा से- संवृत, विवृत, संवृत-विवृत। (1) स्पर्शपरत्व की अपेक्षा- शीत स्पर्श गुण का एक भेद है जो द्रव्य और गुण दोनों का वाचक है, अतः शीत गुणवाला द्रव्य भी 'शीत' कहलाता है। जो योनि शीतस्पर्श परिणाम वाली होती है वह शीतयोनि कहलाती है। इसी प्रकार जिस योनि का उष्ण स्पर्श और जिसका शीतोष्ण स्पर्श परिणाम होता है वह क्रमशः उष्णयोनि और शीतोष्ण योनि होती है।६३ (2) चेतनता की अपेक्षा- जो योनि चेतन सहित हो वह सचित्तयोनि, जो जीव रहित हो वह
अचित्तयोनि (जैसे देवों एवं नारकों की) और जो योनि जीव से युक्त व अयुक्त उभयस्वरूपा हो वह मिश्र (सचित्ताचित्त) योनि (गर्भजों की योनि) कहलाती है।' (3) आवरण की अपेक्षा- सम्यक् प्रकार से आच्छादित अदृश्य योनि संवृतयोनि, अनाच्छादित दृश्य योनि विवृतयोनि एवं जो अंशतः ढकी हुई एवं अंशतः खुली हुई हो वह संवृतविवृत योनि कहलाती है। इस दृष्टि से लोकप्रकाशकार ने उदाहरण सहित उल्लेख किया है- वस्त्रादि से आच्छादित दिव्य शय्यादि के समान प्रथम संवृत योनि, जलाशयादि के समान स्पष्ट रूप से दृष्ट विवृतयोनि और स्त्री के गर्भाशय के तुल्य कुछ स्पष्ट एवं कुछ अस्पष्ट संवृतविवृत योनि होती है। आकार दृष्टि से योनि भेद- आकृति की विविधता से मनुष्यों की योनि के तीन वर्ग किए गए
(१) शंखावर्त योनि-शंख के समान आवर्त आकृति वाली योनि शंखावर्त योनि कहलाती है। यह योनि चक्रवर्ती राजा की पटरानी के होती है। इस योनि में आए हुए जीव अति प्रबल कामाग्नि के परिताप से निश्चयमेव नष्ट होते हैं। अतः यह गर्भवर्जित योनि भी कही जाती है। यथा कुरुमती के हाथ के स्पर्श से ही लोहे का पुतला द्रवीभूत हो गया था। (2) कूर्मोन्नत योनि- कछुए की पीठ की भाँति उन्नत आकृति वाली योनि कूर्मोन्नत योनि कहलाती है। इस योनि में उत्तमपुरुष गर्भ में उत्पन्न होते हैं। उत्तम पुरुषों में तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव एवं बलदेवों की गणना होती। (3) वंशीपत्रा योनि-शेष सभी स्त्रियों की तीसरे प्रकार की बाँस के दो संयुक्त पत्र की आकृति के तुल्य 'वंशीपत्रा' नामक योनि होती है।२०० योनियों का स्वामित्व- स्पर्श, चेतना और आवरण की अपेक्षा से एकेन्द्रिय की क्रमशः संवृत, सचित्त, अचित्त, मिश्र, शीत, उष्ण, शीतोष्ण सात तरह की योनियाँ हैं, विकलेन्द्रिय की योनि संवृत के