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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन अपर्याप्त दोनों काल में होती हैं जबकि मन, वचन और उच्छ्वास बलप्राण ये तीन प्राण
अपर्याप्त काल में नहीं होते हैं। ७५ पर्याप्ति एवं प्राण में समानताएँ१. पर्याप्ति और प्राण में समानता यह है कि ये दोनों जीव एवं अजीव की संयुक्तावस्था में
उत्पन्न होते हैं। जब जीव कर्मपुद्गलों से पूर्णतः रहित सिद्धावस्था में होता है तो वहाँ न
पर्याप्ति होती है और न प्राणा २. पर्याप्ति और प्राण जीव में ही होते हैं, अजीव में नहीं। जिनमें आहार, शरीर, इन्द्रिय और
श्वासोच्छवास की शक्ति नहीं होती है, वे अजीव कहलाते हैं। विग्रहगति में जीव अपर्याप्त संज्ञावान्- विग्रह गति में स्थित जीव का अन्तर्भाव अपर्याप्त अवस्था में कर सकते हैं, क्योंकि अपर्याप्त जीव की जिस प्रकार सामर्थ्याभाव, उपपादयोगस्थान, एकान्तवृद्धियोग स्थान, गति और आयु सम्बन्धी स्थिति होती है ठीक उसी प्रकार विग्रहगति में कार्मण शरीर में स्थित जीव की प्रथम, द्वितीय और तृतीय समय में अवस्थाएँ होती हैं। अतः विग्रहगति के जीव को अपर्याप्तसंज्ञा दी जा सकती है। पर्याप्ति और प्राणों का स्वामित्व- सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय जीव छः पर्याप्तियों में से श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति पर्यन्त प्रथम चार पर्याप्तियों के अधिकारी होते हैं। विकलेन्द्रिय जीव और सम्मूर्छिम तियेच पंचेन्द्रिय जीव भाषा पर्याप्ति पर्यन्त पाँच पर्याप्तियों के स्वामी होते हैं। गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय, गर्भज मनुष्य, देव और नारक षट् पर्याप्तियों का स्वामित्व रखते हैं।' सम्मूर्छिम मनुष्य पाँचवीं पर्याप्ति आरम्भ कर पूर्ण करने के पूर्व ही मृत्यु को प्राप्त कर लेते हैं।
___संज्ञी पंचेन्द्रियों (गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय, गर्भज मनुष्य, देव और नारक) में दस प्राण होते हैं। शेष असंज्ञी पंचेन्द्रिय (सम्मूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय व सम्मूर्छिम मनुष्य) से लेकर अनुक्रम से द्वीन्द्रिय पर्यन्त पर्याप्तकों में एक-एक प्राण घटता जाता है।" असंज्ञी पंचेन्द्रिय में मनोबल प्राण के अतिरिक्त नौ प्राण, चतुरिन्द्रियों में मनोबल प्राण और श्रोत्रेन्द्रिय बलप्राण को छोड़कर शेष आठ प्राण, त्रीन्द्रिय में मन, श्रोत्र और चक्षु के सिवाय शेष सात प्राण तथा द्वीन्द्रिय में मन, श्रोत्र, चक्षु और घ्राण के सिवाय शेष छह प्राण होते हैं। एकेन्द्रिय में स्पर्शन, कायबल, श्वासोच्छ्वास और आयुष्य बल प्राण होते हैं।
संज्ञी और असंज्ञी पंचेन्द्रियों के अपर्याप्त जीवों में सात प्राण ही होते हैं, क्योंकि पर्याप्तकाल में होने वाले श्वासोच्छ्वास बलप्राण, वचन बलप्राण और मनोबलप्राण अपर्याप्तकाल में नहीं होते हैं।