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लोक-स्वरूप एवं जीव - विवेचन (1)
स्थिति निम्नानुसार है २२७.
१. मृदु कोमल पृथ्वीकाय
२. कुमारी मिट्टी
३. रेती सदृश
४. मनः शिल
५. पत्थर के टुकड़े
६. कठोर पत्थर
अप्काय की भवस्थिति उत्कृष्ट (अधिकतम) सात हजार वर्ष, वायुकाय की तीन हजार वर्ष, अग्निकाय की तीन अहोरात्रि, प्रत्येक वनस्पतिकाय की दस हजार वर्ष तथा साधारण वनस्पतिकाय की अन्तर्मुहूर्त होती है। उत्कृष्ट भवस्थिति में से अन्तर्मुहूर्त कम करने पर बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त की उत्कृष्ट स्थिति आ जाती है। इन सभी की उत्कृष्ट व जघन्य अपर्याप्त स्थिति अन्तर्मुहूर्त है। पाँचों की जघन्य (न्यूनतम) भवस्थिति मात्र अन्तर्मुहूर्त ही है।
२२८
२२६
सकल बादर एकेन्द्रिय जीवों की कायस्थिति सत्तर कोटाकोटि सागरोपम है। विकलेन्द्रिय- द्वीन्द्रिय की उत्कृष्ट भवस्थिति १२ वर्ष, त्रीन्द्रिय की उनपचास (४६) दिन, चतुरिन्द्रिय की छह मास है और जघन्य भवस्थिति सभी विकलेन्द्रिय की अन्तर्मुहूर्त है, जबकि पर्याप्त की स्थिति अन्तर्मुहूर्त से कम है। २३०
जलचर
चतुष्पद
उरपरिसर्प
उत्कृष्ट एक हजार वर्ष
उत्कृष्ट बारह हजार वर्ष
उत्कृष्ट चौदह हजार वर्ष
उत्कृष्ट सोलह हजार वर्ष
उत्कृष्ट अठारह हजार वर्ष
उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष
तीनों विकलेन्द्रियों की ओघ से कायस्थिति संख्यात सहस्रों वर्ष है, परन्तु पर्याप्त द्वीन्द्रिय की संख्यात वर्ष, त्रीन्द्रिय की संख्यात दिन और चतुरिन्द्रिय की संख्यात मास की कायस्थिति होती है। * तिर्यंच पंचेन्द्रिय- तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की भवस्थिति और कायस्थिति निम्नानुसार है
२३१
तियंच पंचेन्द्रिय
उत्कृष्ट भवस्थिति
| जघन्य भवस्थिति
कायस्थिति
भुपरि खेचर
सम्मूर्च्छिम
पूर्वको
८४ हजार वर्ष
५३ हजार वर्ष
४२ हजार वर्ष
७२ हजार वर्ष
गर्भज
पूर्व कोटि
तीन पल्योपम
पूर्व
पूर्वकोटि
| पल्योपम
असंख्य अंश के
समान
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मात्र
अन्तर्मुहूर्त
सम्मूर्च्छिम
सात पूर्व कोटि
गर्भज
तीन पल्योपम और सात पूर्व कोटि