________________
85
लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1) स्थान पर विवृत होती है, शेष ६ योनियाँ एकेन्द्रिय के समान है।" देव और नारकी की योनियाँ संवृत, अचित्त, शीतोष्ण, शीत और उष्ण होती हैं। सम्मूर्छिम तिर्यच पंचेन्द्रिय और सम्मूर्छिम मनुष्य की योनियाँ विवृत, सचित्त, अचित्त, मिश्र, शीत, उष्ण और शीतोष्ण हैं। गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय और गर्भज मनुष्य संवृत-विवृत, मिश्र और शीतोष्ण तीन योनियों वाले होते हैं। योनियों का स्वामित्व सारणी से भी स्पष्ट किया जा रहा है| जीव संवृत | विवृत | संवृतविवृत । सचित्त | अचित्त | मिश्र | शीत । उष्ण | शीतोष्ण । एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय | गर्भज मनुष्य x | X | ।
सम्मूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय सम्मूच्छिम
XXX
मनुष्य
नारक
योनिकों और अयोनिकों का अल्पबहुत्व- योनि से उत्पन्न जीव 'योनिक' कहलाते हैं और योनि से उत्पन्न न होने वाले जीव 'अयोनिक' जीव कहलाते हैं। योनिक जीव और अयोनिक जीवों में तीन दृष्टियों से अल्पबहुत्व की गणना हो सकती है। वह इस प्रकार है(१) स्पर्शपरत्व की अपेक्षा से सबसे अल्प जीव शीतोष्ण योनि वाले, उनसे असंख्यातगुणे अधिक उष्णयोनिक जीव, उनसे अनन्त गुणे अधिक अयोनिक जीव और उनसे अनन्तगुणे अधिक शीतयोनिक जीव हैं। (२) चेतनता की अपेक्षा से मिश्रयोनिक जीव सबसे कम, उनसे अचित्त-योनिक जीव असंख्यात गुणे अधिक, उनसे अयोनिक जीव अनन्तगुणे अधिक और उनसे सचित्तयोनिक जीव अनन्तगुणे अधिक
(३) आवरणपरत्व से सर्वाल्प संवृतविवृत योनिक जीव हैं, विवृतयोनिक जीव उनसे असंख्यातगुणे अधिक हैं, अयोनिक जीव उनसे अनन्तगुणे अधिक हैं और संवृतयोनिक जीव उनसे भी अनन्तगुणे अधिक हैं।२०८