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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन समान लघु स्पर्श परिणाम होता है।"
पुद्गल के नवें परिणाम अगुरुलघु से तात्पर्य है गुरु और लघु भार से रहित होना। सूक्ष्म चतुःस्पर्शी (शीतस्पर्श, उष्णस्पर्श, स्निग्धस्पर्श एवं रुक्षस्पर्श) पुद्गल और आकाश, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय एवं काल ये अमूर्त द्रव्य अगुरुलघु हैं। उच्छ्वास युक्त मन, वचन और कार्मण भी अगुरुलघु होते हैं। बादर अष्टस्पर्शी (आठ ही शीतादि स्पर्श मुणयुक्त), वैक्रिय, औदारिक, आहारक और तैजस ये सभी गुरुलघु होते हैं।
पुद्गल का दसवां शब्द परिणाम शुभ और अशुभ दो प्रकार का होता है।" (5) जीवद्रव्य- चेतना लक्षण वाला जीव द्रव्य द्रव्यपरत्व से अनन्त द्रव्य स्वरूप है, क्षेत्र परत्व से असंख्यात लोकप्रमाण है, कालपरत्व से शाश्वत है, भाव परत्व से वर्ण, गन्ध, रस एवं स्पर्श रहित है और गुणपरत्व से ज्ञान दर्शन स्वरूप उपयोग गुण वाला है। विनयविजय कहते हैं
मतिश्रुतावधिमनःपर्यायकेवलान्यपि। मत्यज्ञानं श्रुताज्ञानं विभंगज्ञानमित्यपि।
अचक्षुश्चक्षुरवधिकेवलदर्शनानि च ।
द्वादशामी उपयोगा विशेषाज्जीवलक्षणम् ।।" मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन ये बारह प्रकार के उपयोग जीव के लक्षण हैं।
लोक का कोई भी जीव उपयोग रहित नहीं हैं। यदि वह उपयोग रहित है तब वह जीव नहीं, अजीव माना जाता है। निगोद के जीव में भी अक्षर के अनन्तवें भाग जितना उपयोग रहता है। ज्ञान-दर्शन रूप उपयोग कर्म-पुद्गल के आवरण से जीवों में कुछ अंशों में आवरित हो जाता है। निगोद जीव में उपयोग अत्यन्त अल्प और शेष एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जीवों में क्रमानुसार उसकी वृद्धि होती जाती है। ज्ञानावरणादि कर्म पुद्गल के क्षयोपशम से जीव का विकास होता है। आठों कर्मों का पूर्ण क्षय होने पर जीव 'सिद्ध' कहलाता है।
सिद्ध जीव द्रव्यप्राण से युक्त न होकर ज्ञान आदि भाव-प्राण से युक्त होता है। अलोक में गति नहीं होने से सिद्धजीव लोक के अग्र भाग में स्थित होकर रहते हैं। आठ कर्मों से मुक्त हुए सिद्ध जीव- अनन्त केवलज्ञान, अनन्त केवलदर्शन, अनन्त चारित्र, अनन्त सुख, क्षायिक सम्यक्त्व, अनन्त अवगाहना, अक्षय स्थिति और अनन्त वीर्य इन आठ अनन्त गुणों से युक्त होते हैं।
जितने क्षेत्र में एक सिद्ध जीव रहता है उतने ही क्षेत्र में अनन्त सिद्ध जीव भी बिना बाधा के