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चौदह भेद
पन्द्रह भेद तीन वेद
सोलह
भेद
सतरह
भेद
उन्नीस
भेद
के पंचेन्द्रिय
मनुष्य
अठारह भेद
बाईस
भेद
सात भेदों वाले पर्याप्त जीव
पुरुष - स्त्री नपुंसक वेदी नारकी
दो वेद
वाले
देव
तीन वेद वाले तिर्यंच
पंचेन्द्रिय
तिर्यंच, मनुष्य,
पर्याप्त
एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक वाले पाँच
देव तथा नारकी इन आठ के
नौ प्रकार के पर्याप्त जीव
नौ प्रकार के पंचेन्द्रिय
| पृथ्वीकायादि पाँच एकेन्द्रिय पन्द्रह भेदों में निरूपित नौ प्रकार के पंचेन्द्रिय तीन
विकलेन्द्रिय
बीस भेद दस भेद वाले पर्याप्त जीव
इक्कीस भेद पाँच सूक्ष्म
स्थावर
स्थावर
ग्यारह भेदों वाले पर्याप्त जीव
लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
सात भेदों वाले अपर्याप्त जीव
पर्याप्त
अपर्याप्त सूक्ष्म बादर एकेन्द्रिय
बादर
एकेन्द्रिय
एकेन्द्रिय
पाँच बादर
तीन
विकलेन्द्रिय
नौ प्रकार के अपर्याप्त जीव
बादर एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, कुल पाँच अपर्याप्त तीन विकलेन्द्रिय कुल पाँच
पर्याप्त जीव
इन आठ ही प्रकार के जीवों के अपर्याप्त
दस भेद वाले अपर्याप्त जीव पाँच पर्याप्त स्थावर पाँच अपर्याप्त
स्थावर
ग्यारह भेदों वाले अपर्याप्त जीव
त्रस
एकेन्द्रिय जीवों के भेद
एकेन्द्रिय के अन्तर्गत स्थावर जीवों का परिगणन होता है । स्थावर नामकर्म के उदय से उपजनित विशेष जीव स्थावर कहलाते हैं
“स्थावरास्तत्र पृथ्व्यम्बुतेजोवायुमहीरुहः'*
पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय ये पाँच स्थावर कहलाते हैं।
ये पंच स्थावर सूक्ष्म और बादर से विभाजित किये गये हैं तथा वनस्पति के बादरकाय में साधारण और प्रत्येक दो अवान्तर भेद हैं। इन ग्यारह स्थावर के पर्याप्त और अपर्याप्त भेद से कुल बाईस द हैं। जिसे तालिका में निम्न प्रकार देखा जा सकता है