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लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1)
। एकेन्द्रिय भेद
एकेन्द्रिय भेद
पृथ्वीकायिक
अप्कायिक
तेजस्कायिक
वायुकायिक
वनस्पतिकायिक
| अपर्याप्त ] | अपर्याप्त | अपर्याप्त ] | अपर्याप्त | अपर्याप्त ] | अपर्याप्त | अपर्याप्त | अपर्याप्त | अपर्याप्त | अपर्याप्त ] | अपर्याप्त |
सूक्ष्म एकेन्द्रिय- जो जीव दूसरे जीव एवं वस्तु के द्वारा बाधित न हो और स्वयं भी किसी को बाधा न पहुँचाए वह सूक्ष्म-जीव कहलाते हैं तथा जो जीव दूसरों को बाधित करें और स्वयं भी अन्य से बाधित होवें, वे बादर जीव कहलाते हैं। सूक्ष्म जीव प्रतिघात मुक्त होकर सम्पूर्ण लोक मे ठसाठस भरे हैं। सूक्ष्म जीवों का पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु से भी घात नहीं होता है। पूज्यपादाचार्य, भट्ट अकलंक, कुन्दकुन्दाचार्य और कर्मग्रन्थकार सूक्ष्म जीव को इन्द्रिय-अग्राह्य और बादर जीव को इन्द्रिय-ग्राह्य मानते हैं। इन्द्रिय ग्राह्य पदार्थ को स्थूल और इन्द्रिय अग्राह्य को सूक्ष्म कहना व्यवहार है, परमार्थ नहीं। चक्षु से दिखाई न देना और दिखाई देना यह सूक्ष्म और बादर जीवों का स्थूल भेद है। बेर और आंवले में छोटे-बड़े होने से सूक्ष्मता और बादरता स्पष्ट दिखाई देती है वैसी सूक्ष्मता, बादरता इन जीवों में नहीं है, अपितु नामकर्मोदय के निमित्त से ही जीव सूक्ष्म और बादर होते हैं। जो जीव सूक्ष्मनामकर्म के योग से शरीर धारण करते हैं वे सूक्ष्मपृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव तथा जो जीव बादरनामकर्म के योग से शरीर धारण करते हैं वे बादर एकेन्द्रिय कहलाते हैं।
जीवनकाल अल्प होने से जिन जीवों का वर्ण, गंध, रसादि पूर्णता को प्राप्त नहीं होता वह अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय तथा जो जीव अपनी पर्याप्तियाँ पूर्ण करता है वह पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय कहलाता है। वर्णादि में भिन्नता होने से पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय के हजारों भेद होते हैं।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव औदारिक शरीरधारी होते हुए भी चक्षुगम्य नहीं होते हैं। स्थावरों में वनस्पतिकायिक जीव साधारण और प्रत्येक दो प्रकार के होते हैं। प्रत्येक और साधारण शरीर वाले जीवों में साधारण शरीर वाले जीव नियम से वनस्पतिकायिक ही होते हैं और शेष पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय तथा वायुकाय के जीव प्रत्येक शरीरी होते हैं।५६
एक जीव के शरीर को प्रत्येक और अनन्त जीवों के सम्मिलित शरीर को साधारण कहते हैं।