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लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1)
तृणवलयहरीतकौषधिजलरुहकुहणाश्च विज्ञेयाः ।। अर्थात् वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वक, तृण, वलय, हरीतक, औषधि, जलरुह और कुहण, इन बारह प्रकारों के प्रत्येकशरीरबादर वनस्पतिकायिक जीव होते हैं। 1. वृक्ष- जिस जीव के आश्रित मूल, पत्ते, फूल, फल, शाखा, प्रशाखा, स्कन्ध, त्वचा आदि अनेक होते हैं वह वृक्ष कहलाता है। वृक्ष दो प्रकार के होते हैं- एकास्थिक (जिसके फल में एक ही बीज या गुठली हो) और बहुबीजक (जिसके फल में अनेक बीज हों)। अंकोल, जामुन, नीम, आम, अरीठा, अशोक, नाग इत्यादि एकास्थिक वृक्ष हैं और तिंदुक, धावड़ी, बड़, अनार, कदम्ब, कटहल इत्यादि बहुबीजक वृक्ष हैं। ये दोनों प्रकार के वृक्ष तो प्रत्येक शरीरी होते हैं, लेकिन इनके मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा और प्रवाल असंख्यात जीवों वाले तथा पत्ते प्रत्येक जीव वाले और पुष्प अनेक जीवों वाले होते हैं।" 2. गुच्छ- इसका अर्थ है- पौधा। इसके उदाहरण हैं- बैंगन, बेरी, नीली, तुलसी, मातुलिंगी, निर्गुण्डी, अलसी, धनिया, कैर, भिंडी आदि। 3. गुल्म-फूलों के पौधे 'गुल्म' कहलाते हैं। जैसे चम्पा, जई, जूही, कुन्द, मोगरा, मल्लिका आदि। 4. लता- जो जीव बेल स्वरूप होते हैं तथा वृक्षों पर चढ़ जाते हैं वे लता कहलाते हैं, जैसेचम्पकलता, नागलता, अशोकलता आदि। 5. वल्ली- ऐसे बेल स्वरूप जीव जो विशेषतः जमीन पर फैलते हैं वे वल्लियाँ कहलाते हैं, उदाहरणार्थ- कुम्हड़ा (कद्दु की बेल), त्रपुषी (तरबूज की बेल), कर्कटकी (ककड़ी की बेल) आदि।* 6. पर्वक-जिन वनस्पतियों में जीव बीच-बीच में पर्व या गांठे स्वरूप हों वे पर्वक वनस्पति कहलाती हैं। यथा- इक्षु, बांस, बेंत, द्रक्कुड़, नड, काश आदि। 7. तृण- दूर्वा, दर्भ, अर्जुन, एरंड, कुरुविंदक, क्षीर, बिस आदि जाति में रहने वाले जीव 'तृण' से अभिहित होते हैं। 8. वलय- वलय के आकार वाले गोल-गोल पत्तों वाले जीव 'वलय वनस्पति' के नाम से कहे जाते हैं। जैसे-सुपारी, खजूर, सरल, नारियल, तमाल, ताल, केला आदि। 9. हरितक- विशेषतः हरी सागभाजी के जीव हरितक कहलाते हैं। यथा- चन्दलिया, बथुआ, पालक, मंडुकी आदि। .. 10. औषधि- जो वानस्पतिक जीव फल (फसल) के पक जाने पर दानों के रूप में होते हैं वे औषधि वनस्पति कहलाते हैं। इनकी मुख्य २४ जाति है, जिसमें सभी प्रकार के अनाज सम्मिलित हैं- जौ,