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उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आवश्यकता। छब्बीसवाँ ६६७ |८० | ऊर्ध्वलोक का प्रारम्भ, प्रमाण, प्रतर, विमान सम्बन्धित सम्पूर्ण
वर्णन, सौधर्म-ईशान लोक, सुधर्मा सभा के चैत्य स्तूप, ध्वजा, द्वार, अभिषेक-व्यवसाय सभा, देव, वृक्ष, देवों की भाषा, शक्ति, उनका काल निर्गमन, श्वासोच्छ्वास, देवांगनाएँ, उनका आयुष्य, | अवधि-ज्ञान आदि का वर्णन, सौधर्म-ईशान के इन्द्र, देव-देवियों,
सेनापतियों का वर्णन, प्रथम लोकपाल सोम, द्वितीय यम, तृतीय
| वरुण, चतुर्थ वैश्रमण का स्वरूप। सत्ताईसवा ६७० | ४१ । | सनत्कुमार-माहेन्द्र नामक तीसरे-चौथे देवलोक का स्थान, आकार,
|प्रतर, विमान एवं उनके इन्द्रों का वर्णन, ब्रह्मदेव नामक पाँचवें देवलोक का, लोकान्तिक देवों का, लांतकेन्द्र नामक छठे देवलोक का, किल्विषिक देव, महाशुक्र नामक सातवें देवलोक का, सहस्रार नामक आठवें, आनत-प्राणत नामक नौवे-दसवें, आरण-अच्युत नामक ग्यारहवें-बारहवें देवलोक का, अच्युतेन्द्र, नवग्रैवेयक, पाँच | अनुत्तर विमान एवं सिद्धशिला का विस्तृत वर्णन।
काललोक अट्ठाईसवाँ १०६० | ५० | कालद्रव्य का विस्तृत विवेचन, आचार्यों का मतभेद, वर्तना,
परिणाम, क्रिया, परत्व-अपरत्व आदि का प्रतिपादन, काल द्रव्य की सिद्धि, काल की सूक्ष्मतम ईकाई समय, मनुष्य क्षेत्र के बाहर काल विषयक शंका-समाधान, काल द्रव्य के ११ निक्षेप और उनका | विवरण, सन्नाम काल, स्थापना काल, द्रव्यकाल, अद्धाकाल, | यथायुष्ककाल, उपक्रमकाल, सामाचारी काल, कर्मों का उपक्रम, | कर्म विपाक, देशकाल, काल-काल आदि का स्वरूप, प्रमाणकाल
प्राण, क्षुल्लक भव, मुहूर्त आदि का स्वरूप, पाँच प्रकार के संवत्सर,
| षड्ऋतुएँ, द्वादश माह, युग आदि का विवेचना उनतीसवाँ ३५७ | ३७ ... | पूर्वांग तथा पूर्व का स्वरूप, अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी के छह-छह
| आरक, युगलिकों का विवेचन, प्रथम तीर्थकर, पुरुष की ७२ एवं स्त्री की ६४ कलाएँ, भगवान् का पाणिग्रहण एवं राज्याभिषेक