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उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
गाथाएँ हैं एवं अन्त में चौदह कड़ियों का कलश है। इस विवरण से यह ज्ञात होता है कि यशोविजय जीने ५०० पद्यों का योगदान किया है।
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जैन परम्परा में श्रीपाल एवं मैनासुन्दरी जी की कथा लोकप्रिय रही है। नाटकों के रूप में भी इसका मंचन हुआ है तथा यह भारतीय जनमानस को सत्कर्म करने के लिए प्रेरित करती रही है। (2) नेमिनाथ भ्रमर गीता - अद्यावधि उपलब्ध, जैन एवं अजैन फागु काव्य में प्राचीनतम काव्य जिनपद्मसूरिकृत स्थुलिभद्र फागु काव्य है। भ्रमरगीता नाम से विक्रम संवत् १५७६ में चतुर्भुज नामक कवि की रचना प्राप्त होती है। यह नेमिनाथ भ्रमर गीता सम्भवतः उसी परिकल्पना के आधार पर रची गई है एवं जैन भ्रमर गीता के रूप में इसका प्रथम स्थान है। इसमें ३६ कड़ियाँ हैं। सर्वप्रथम तीन दोहें हैं, फिर फाग की दो कड़ियाँ और छन्द की एक कड़ी, इस क्रम से रचना हुई है। तीसरी कड़ी में भ्रमरगीत शब्द का उल्लेख हुआ है। इस नेमिनाथ भ्रमरगीता में नेमिनाथ एवं राजीमति के प्रसंग को ही गेय रूप में मनोहारी दृश्यों के साथ प्रस्तुत किया गया है । नेमिनाथ जब राजीमति से विवाह करने के लिए जा रहे थे तब राजीमति सजधज कर झरोखे में बैठकर बारात का दृश्य देख रही थी। कवि ने राजीमति के देह एवं अलंकारों का सुन्दर वर्णन किया है। इन दोनों के मिलन की प्रतीक्षा को कवि ने विप्रलम्भ शृंगार के रूप में उभारा है। जब नेमिनाथ ने एक बाड़े में बंद पशुओं की चीत्कार सुनी तो उनका करुण हृदय जागृत हो उठा। पृच्छा करने पर ज्ञात हुआ कि इन पशुओं का उपयोग आहार के लिए किया जाएगा। नेमिनाथ को ऐसा विवाह प्रसंग अनुकूल नहीं लगा। उन्होंने इस प्रकार की हिंसा से मुख मोड़ लिया एवं सांसारिक प्रलोभनों का त्याग कर प्रव्रज्या पथ अंगीकार कर लिया। राजीमति इस घटना से विह्वल हो गई । नेमिनाथ भावी तीर्थंकर थे जो अरिष्टनेमिनाथ नाम से भी एवं २२वें तीर्थकर के रूप में भी जाने जाते हैं। राजीमति ने भी संसार को छोड़कर प्रव्रज्या अंगीकार की एवं अन्त में नेमिनाथ की भांति मोक्ष प्राप्त किया।
इस कृति की रचना भाद्रपद मास में विक्रम संवत् १७०६ में की गई थी। 7. पूजा विषयक साहित्य
जैन सन्तों ने जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा भी करवाई है और पूजा की विधि का भी प्रतिपादन किया है। विनयविजय गणी ने जिनमंदिर गमन एवं जिन प्रतिमा के दर्शन के लाभ का भी निरूपण किया है। इस दृष्टि से उनकी दो रचनाएँ उल्लेखनीय हैं - १. जिनपूजन नुं चैत्यवंदन २. सीमंधर स्वामी नुं चैत्यवंदन |
(1) जिनपूजन नुं चैत्यवंदन - मात्र बारह कड़ियों में गुजराती भाषा में इस कृति का निर्माण 'प्रणमी श्री गुरुराज आज जिनमंदिर केरो' पंक्ति से प्रारम्भ किया गया है। इसमें मुख्यतः जिनालय में