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जीवसमास
मार्गणाओं के द्वारा जीवसमास अनुगन्तव्य कहे हैं। तीसरी गाथा के द्वारा नामादि चार वा बहुत प्रकार के निक्षेपों की प्ररूपणा का विधान है। चौथी गाथा में उक्त छह अनुयोगद्वारों से सर्वभाव (पदार्थ) अनुगन्तव्य कहे हैं। पांचवीं गाथा में सत्-संख्यादि आठ अनुयोगद्वारों का निर्देश है, जो कि इस प्रकार है
संतपयपरूवणया दव्वपमाणं च खित्त-फुसणा य। कालंतरं च भावो अप्याबहुअं च दारा ।। ५ ।।
पाठकगण इस गामा के साथ पसाहः म स खण्ड 'संतपरूवणा' आदि सातवें सूत्र से मिलान करें। तत्पश्चात् छठी 'गइ इंदिए य काए' इत्यादि सर्वत्र प्रसिद्ध गाथा के द्वारा चौदह मार्गणाओं के नाम गिनाये गये हैं, जो कि ज्यों के त्यो षट्खण्डागम के सूत्रांक ४ मे बताये गये हैं। पुन: सातवीं गाथा में 'एतो उ नउदसण्ह इहाणुगमणं करिस्सामि' कहकर और चौदह गुणस्थानों के नाम दो गाथाओं में गिनाकर उनके क्रम से जानने की प्रेरणा की गई है। जीवसमास की ५वी गाथा से लेकर ९वी गाथा तक का वर्णन जीवस्थान के
रे सूत्र से लेकर २२वें सूत्र तक के साथ शब्द और अर्थ की दृष्टि से बिल्कुल समान है। अनावश्यक विस्तार के भय से दोनों के उद्धरण नहीं दिये जा
इसके पश्चात् ७६ गाण्याओं के द्वारा सत्प्ररूपणा का वर्णन ठीक उसी प्रकार से किया गया है, जैसाकि जीवस्थान की सत्प्ररूपणा में है। पर जीवसमास मे उसके नाम के अनुसार प्रत्येक मार्गणा से सम्बन्धित सभी आवश्यक वर्णन उपलब्ध हैं। यथा- गतिमार्गणा में प्रत्येक गति के अवान्तर भेद-प्रभेदों के नाम दिये गये हैं। यहाँ तक कि नरकगति के वर्णन में सातों नरकों और उनकी नामगोत्र वाली सातों पृथिबियों के, मनुष्यगति के वर्णन में कर्मभूमिज, भोगभूमिज, अन्तद्वोपज और आर्य-म्लेच्छादि भेदों के तथा देवगति के वर्णन में चारों जाति के देवों के तथा स्वर्गादिकों के भी नाम गिनाये गये हैं। इन्द्रिय-मार्गणा में गणस्थानों के निर्देश के साथ छहों पर्याप्तियों और उनके स्वामियों का भी वर्णन किया गया है। जबकि यह वर्णन जीवट्ठाण में योगमार्गणा के अन्तर्गत किया गया है।
कायमार्गणा में गुणस्थानों के निर्देश के अतिरिक्त पृथिविकायिक आदि पांचों स्थावर कायिकों के नामों का विस्तार से वर्णन है। इस प्रकार की ‘पुढवी य सक्करा वालुया' आदि १४ गाथाएँ वे ही हैं, जो धवल पुस्तक १ के पृ० २७२ आदि में, तथा मूलाचार में २०६वीं गाथा से आगे, तथा उत्तराध्ययन, आचारांगनियुक्ति, प्राकृत पञ्चसंग्रह और कुछ गो. जीवकाण्ड में ज्यों की त्यों