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जीवसमास ऐसा चौदह रज्जु लम्बा लोक तीन भागो में विभक्त है—
ऊह्मलोक - मेरुपर्वत के समतल भूमि भाग से नौ सौ योजन ऊपर (ज्योतिष चक्र के ऊपर)का सम्पूर्ण भाग लोक ऊर्ध्वलोक है। इसका आकार मृदंग (ढोलक) जैसा है। यह कुछ कम सात रज्जु परिमाण है।
अधोलोक - मेरु पर्वत के समतल भूमि भाग से नौ सौ योजन नीचे का लोक अधोलोक है। इसका आकार उल्टे किये हुए सकोरे या वेत्रासन जैसा हैं यह कुछ अधिक सात रज्जु परिमाण है।
तिर्यकलोक -ऊर्ध्वलोक और अधोलोक के मध्य में अठारह सौ योजन परिमाण तिर्यक्लोक है। इसका आकार झल्लरो या पूर्ण चन्द्रमा के समान है। (लोक प्रकाश भाग - २, सर्ग १२. अभिधानराजेन्द्रकोष भाग ६, पृ० ६९७, भगवती तक ११.६सक १०, सू: ४२०)
लोक संस्थान -गणितानुयोग में लोक का संस्थान इस प्रकार कहा हैअलोकाकाश के मध्य में लोकाकाश है। वह सान्त व ससीम है। इसका आकार त्रिसरावसम्पुटाकार है। एक सराव (शिकोरा) उल्टा, उसपर एक सराव सीधा, फिर एक सराव उल्टा रखने से जो आकार बनता है उसे त्रिसरावसम्पुटाकार कहते हैं। शास्त्रीय भाषा में यह सुप्रतिष्ठत आकार कहा जाता है। यह लोक नीचे से विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त, पुनः विस्तृत व संक्षिप्त है। ____ आगपोत्तरकालीन जैन ग्रन्थों में लोक को लोक पुरुष के रूप में चित्रित किया गया है। यद्यपि जैनागमों में कहीं भी लोक पुरुष का वर्णन नहीं है, फिर भी कतिपय जैन प्रन्थों में लोक का आकार पुरुष के समान भी बतलाया है। कहा गया है कि जैसे दोनों हाथ कमर पर रखकर तथा दोनों पैरों को फैलाकर कोई पुरुष खड़ा हो, वैसा ही यह लोक है।
वैदिक ग्रन्थों में विश्व को विराट् पुरुष के रूप में चित्रित किया गया हैभागवतपुराण २/५/३८-४० (प्रथम भाग, पृ० १६६
गाथा में कथित तीनों शब्द - १. वेत्रासन, २. झल्लरी व ३. मृदंग दिगम्बर आगमों में भी प्राप्त हैं। श्वेताम्बर परम्परा में अधोलोक को उल्टे सराव तुल्य, मध्यलोक को पल्यंक आकार तथा ऊर्ध्वलोक को मृदंग के आकार का कहा है। ___यह लोक मध्यलोक की जितनी चौड़ाई है, उससे चौदह गुणा लम्बा है। मध्य लोक में जम्बू द्वीप
मझे प मजालोपस्स जंबूदीयो य वसंठाणो । जोयणसयसाहस्सो विच्छण्णो मेरुनाभीओ ।।१८५।।