Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 214
________________ १६१ स्पर्शन-द्वार किसमें कितने समुद्घात ? पज्जत्तबागरानिल नेरइएस य हर्वति चत्तारि । पंचसुरतिरियपंचिदिएसु सेसेसु तिगमेव ।।१९३।। गाथार्थ- पर्याप्त बादर वायुकाय तथा नारको जीवों मे चार समुद्घात होते है। देवता तथा तिर्यञ्च पश्चन्द्रिय में पाँच समुद्घात तथा शेष सभी में तीन समुदयात होते हैं। विवेखन-वैक्रिय करणलब्धि सम्पत्र पर्याप्त बादर वायकाय तथा नारकी जीवों में १, वेदना, २. कषाय, ३. मरण तथा ४. बैंक्रिय - ये चार समुद्घात सम्भव हैं। देवता तथा तिर्यश पञ्चेन्द्रिय मे तेजस् लब्धि होने के कारण पाँच समुद्घात सम्भव हैं। शंष अर्थात् पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वनस्पतिकाय, हीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च मे तीन समुद्घात सम्भव होते हैं। समुद्घात का काल दंड कवाड़े रुपए लोए चउरो य पडिनियत्तते । केलिय अवसमए भिन्नमुहृत्तं भवे सेसा ।।११४।। गाथार्थ-केवली समुदधात मे दंड, कपाट, रुचक और लोकरूप आकार ग्रहण करने में चार समय लगते हैं तथा चार समय में वे आत्प-प्रदेश पुनः स्वस्थान पर लौट आते हैं। इस प्रकार केवलो समुद्घात आठ समय का होता है। शेष समुद्घातों का अन्तर्मुहूर्त काल परिमाण जानना चाहिये। केवली-समुद्घात के प्रथम समय में दण्ड, दूसरे समय में कपाट, तीसरे समय में रुचक अर्थात् मथानी का आकार देकर तथा चौथे समय में सम्पूर्ण लोक को आत्म-प्रदेश से पूरित किया जाता है तथा पुनः समुद्घात का संहरण करने में चार समय लगते हैं। इस प्रकार इसका काल आठ समय है। शेष सभी समुद्घातों का समय अन्तर्मुहूर्त परिमाण है। गुणस्थानों में स्पर्शना मिच्छेहि सव्वलोओ सासणमिस्सेहिं अव्वपदेसेहिं । पुछा उपसभागा पारस अष्ट्र छच्चेव ।। १९५।। गाधार्थ-चौदह गुणस्थानवी जीवो में से- मिथ्यादृष्टि सर्वलोक का और सास्वादन, मिश्र, अविरत सम्यग्दृष्टि और देशविरत सम्यग्दृष्टि लोक के चौदह भाग

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