________________
१७७
अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंगत तथा सयोगीकवली गुणस्थान भी सर्वकालों में पाये जाते हैं। चौथे एवं पांचवें गुणस्थानवर्ती जीव क्षेत्र की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग की प्रदेश राशि के सम्मान से होते हैं। प्रमत्तसंयत की संख्या हजार कोटि पृथकृत्व अर्थात् दो हजार करोड़ से नव हजार करोड़ तक, अप्रमत्तसंयत संख्यात तथा सयोगकेवली कोटि पृथकत्व अर्थात् दो करोड़ से नत्र करोड़ होते हैं।
काल-द्वार
अनेक जीवों की अपेक्षा से सास्वादन तथा मिश्र गुणस्थान का काल पल्लासंखियभागो सासणमिस्सा य हुति उक्कोसं ।
अविरहिया य जहयोण एक्कसमयं मुहुसंतो ।। २२० ।।
गाथार्थ - सास्वादन एवं मिश्रदृष्टि (सम्यक् मिथ्यादृष्टि) गुणस्थान का काल अधिकतम पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक और न्यूनतम एक समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त तक निरन्तर होते हैं।
विवेचन - द्वितीय तथा तृतीय गुणस्थान जघन्यतः एक समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त तक तथा उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक पाया जाता है, फिर जरुर अन्तराल आता है।
एक जीव की अपेक्षा से सास्वादन एवं मिश्र गुणास्थान का काल सासवणेगजीव एक्कगसमचाइ जाव छावलिया ।
सम्मामिच्छद्दिड्डी अवरुक्कोसं मुहुर्ततो ।। २२१ ॥
गाथार्थ - एक जीव की अपेक्षा से सास्वादन गुणस्थान एक समय से लेकर छः आवलिका तक और मिश्रदृष्टि गुणस्थान अन्तर्मुहूर्त काल तक रहता है।
विवेचन - सास्वादन गुणस्थान किसी को एक समय, किसी को दो समय किसी को तीन किसी को चार, किसी को पाँच तथा किसी को छ: समय तक रहता है। अतः सास्वादन गुणस्थान का काल जघन्यतः एक समय तथा उत्कृष्टतः छः आवलिका परिमाण कहा गया है।
मिश्र गुणस्थान का काल जघन्य एवं उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त परिमाण कहा गया है।
एक जीव की अपेक्षा से मिथ्यात्व गुणस्थान का काल मिच्छत्तमणाईचं अजयसिगं सपज्जवसियं च । साङ्गयसपज्जवलियं मुहुरा परियट्टमक्षूणं ।। २२२०