Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 255
________________ जीवसमास ५. जब प्रतिसमय तिहत्तर (७३) से लेकर चौरासी (८४) तक सिद्ध हों तब सतत रूप से चार समय तक सिद्ध होते हैं। २०२ ६. जब पच्चासी (८५) से लेकर छियानवें (९६) तक प्रतिसमय सिद्ध हों तब निरन्तर तीन समय तक सिद्ध होते हैं। ७. जब प्रतिसमय सत्तानवें (९७) से लेकर एक सौ दो (१०२) तक सिद्ध हों तब निरन्तर दो समय तक सिद्ध होते हैं। ८. जब कम से कम ( जघन्य ) एक सौ तीन (१०३) तथा अधिकतम ( उत्कृष्ट ) एक सौ आठ (१०८) सिद्ध हों तब वे एक समय में सिद्ध होते हैं। उसके बाद अवश्य ही अन्तराल होता है। (बृहदसंग्रहणी, गाथा - ३४७ ) इस प्रकार इन गाथाओं में जीव स्थानकों में जब तक अन्तर नहीं होता तब तक का काल बताया गया है। अब कहाँ-कहाँ जीव स्थानकों में अन्तर होता हैं उसका विवेचन किया जा रहा है। नोट - ( यह गाथा वृहदसंग्रहणी में यथावत् विद्यमान है | ) ३ अन्तर- द्वार नारक, निर्बंध, मनुष्य चडवीस मुहूता सत दिवस पक्खो य मास दुग चउरो । छम्मासा रचणाइसु (छप्पडमासु बारस) चडवीस मुहुत्त सपियरे । । २५० ।। गाथार्थ - चौबीस मुहूर्त सात दिन, पन्द्रह दिन, एक मास, दो मास, चार मास और छः मास क्रमशः रत्नप्रभा आदि सात नरकों में अधिकतम अन्तर- काल जानना चाहिये। संज्ञी तथा इतर ( असंज्ञी मनुष्य) का अन्तर - काल अधिकतम चौबीस मुहूर्त का होता है। विवेचन - नरकों में प्राय: नारकी जीव सतत रूप से उत्पन्न होते रहते हैं। उनमें कभी-कभी ही अन्तराल पड़ता है। यह अन्तराल न्यूनतम सभी नरकपृथ्वियों में एक समय का होता है, किन्तु अधिकतम अन्तराल प्रत्येक नरक में इस प्रकार है १. रत्नप्रभा पृथ्वी में चौबीस मुहूर्त का, २. शर्कराप्रभा में सात दिन का, में ३. बालुकाप्रभा में पन्द्रह दिन का ४. पंकप्रभा में एक मास का ५. धूमप्रभा दो मास का ६. तमस्तमप्रभा में चारमास का तथा ७ तमस्तमप्रभा में छः मास

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