Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 283
________________ जीवसमास उपयोग- अनाकार उपयोगी अल्प है, साकार उपयोगी उनसे संख्यात गुणा अधिक हैं। इसका कारण है कि दर्शन की अपेक्षा ज्ञान का काल संख्यात गुणा अधिक है। पर्याप्त-अपर्याप्त की अपेक्षा पर्याप्त जीव असंख्यात गुणा अधिक हैं इसका कारण भी काल ही है। अपर्याप्त का काल अन्तर्मुहर्त है तथा पर्याप्त का काल उत्कृष्टतः तैतीस सागरोपम है। मावर- बादर अर्थात् स्थूल जीव अल्प है तथा सूक्ष्म उनसे असंख्यात गुणा अधिक हैं। निगोद आदि जीवों की अपेक्षा से ऐसा कथन किया गया है। अजीव में अल्पबहुत्व धमाधम्भागासा सिग्निवि दबया भवे थोवा। ततो अणंतगणिया पोग्गल दवा तओ समया ।। २८२।। गाथार्थ- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा आकाशास्तिकाय- ये तो तीनों ही अल्प हैं। इनसे पुद्गल द्रव्य अनन्त है। पुद्गल द्रव्य से समय (काल द्रव्य) अनन्त हैं। विवेचन- यद्यपि जहाँ-जहाँ पुगल द्रव्य तथा काल है वहाँ-वहाँ ये तीनों द्रव्य हैं फिर भी ये संख्या में एक हैं, अत: अल्प है। ये तीनों ही द्रव्य परस्पर समान हैं। पुद्गल द्रव्य इनसे अनन्त गुणा अधिक हैं। उनसे भी निर्विभाज्य कालांश अर्थात् समय अनन्त गुणा अधिक हैं। पुद्गल अनन्त हैं, वे भूत में भी थे, वर्तमान में भी हैं तथा वे पुद्गल परिवर्तित होकर भविष्य में भी रहेंगे। फिर भी एक-एक पुद्गल द्रव्य पर अनन्त कालाणुओं के होने से काल द्रव्य पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा भी अधिक माना गया हैं। प्रदेश अल्पबहुत्व पम्मामम्मपएसा तुल्ला परमाणवो अणंतगुणा। समया तओ अणंता तह खपएसा अणंतगुणा ।। २८३।। षमाधम्मपएसेहितो जीवा तओ अणंतगुणा । . पोग्गलसमया खंपि य पएसओ तेणऽणतगुणा ।। २८४।। गाथार्थ-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश समान है। उनसे परमाणु अनन्त गुणा अधिक हैं। परमाणु से कालाणु अर्थात् समय अनन्त गुणा अधिक है। उनसे आकाश प्रदेश अनन्त गुणा अधिक हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 281 282 283 284 285