Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 281
________________ २२८ जीवसमास चढ़ने वाले सभी मनुष्य गर्भज होने के कारण वे संख्यात ही होते हैं। ज्ञातव्य है कि पूर्व में भी हमने गर्भज मनुष्यों की संख्या - संख्यात बतायी हैं। गुणस्थानवत जीवों में सबसे कम अयोगी केवली होते हैं। उनसे संख्यात गुणा अधिक उपशामक है। उपशामक से संख्यात गुणा अधिक क्षपक हैं। उनसे संख्यात गुणा अधिक सयोगी केवली हैं। उनसे संख्यात गुणा अधिक अप्रमत्तसंयत हैं। अप्रमत्त से संख्यात गुणा प्रमत्तसंयत हैं। प्रमत्त संयत से संख्यात गुणा अधिक देशविरत है। देशविरत से संख्यात गुणा अधिक अविरत सम्यक्त्वी हैं। उनसे संख्यात गुणा अधिक शुरुवादानी हैं। उनसे संख्यात गुणा मिश्रदृष्टि हैं तथा उनसे असंख्यात गुणा गर्भज तथा सम्मूर्च्छिम मनुष्य हैं। इस प्रकार यह अल्पबहुत्व द्वार पूर्ण हुआ । अब चौदह मार्गणाओं की अपेक्षा से संक्षेप में अल्पबहुत्व द्वार के विषय में चर्चा की जाती है १. गति - चारों गतियों में मनुष्य सबसे कम हैं, मनुष्य से संख्यात गुणा अधिक नारकी, उनसे असंख्यात गुणा अधिक देव, उनसे अनन्त गुणा अधिक सिद्ध तथा उनसे अनन्त गुणा अधिक तिर्यन हैं। २. इन्द्रिय- इन्द्रियों की अपेक्षा से सबसे कम पंचेन्द्रिय जीव हैं। फिर क्रमशः चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय एक दूसरे से अधिक हैं। उनसे अनन्त गुणा अधिक अनिन्द्रिय (सिद्ध) तथा उनसे अनन्त गुणा अधिक एकेन्द्रिय हैं। ३. काय काय की अपेक्षा से सबसे कम उस कायिक जीव हैं। उनसे असंख्यात गुणा अधिक तेजस्काय हैं उनसे क्रमश: विशेष अधिक पृथ्वीकाय अप्काय और वायुकाय के जीव हैं उनसे भी अनन्त गुणा अधिक सिद्ध (अकायी) हैं, उनसे अनन्त गुणा अधिक वनस्पतिकाय हैं। - ४. योग - सबसे कम मनोयोगी, उनसे असंख्यात गुणा अधिक वचनयोगी तथा उनसे अनन्त गुणा अधिक अयोगी ( सिद्ध) तथा उनसे अनन्त गुणा अधिक काययोगी हैं। ५. वेद - सबसे कम पुरुष वेदी हैं, उनसे संख्यात गुणा अधिक स्वीवेदी और उनसे अनन्त गुणा अधिक अवेदी (सिद्ध) हैं तथा उनसे भी अनन्त गुणा नपुंसक हैं। (इन्हें निगोद आदि सर्व जीवों की अपेक्षा से जानना चाहिये) ६. कवाब - सबसे कम अकषायी (केवली), उनसे अनन्त गुणा मान कषायी, उनसे विशेषाधिक क्रोधकषायी, उनसे विशेषाधिक मायाकषायी, उनसे

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