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अल्पबहुत्व- द्वार
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धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय तथा जीवास्तिकाय के प्रदेश असंख्यात हैं। फिर भी धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा जीब द्रव्य के प्रदेश अनन्त गुणा हैं। जीव द्रव्य के प्रदेशों से पुद्गल के प्रदेश अनन्त गुणा अधिक हैं पुल द्रव्य से 'समय' अर्थात का गुणा अधिक हैं एवं उससे लोकाकाश के प्रदेश अनन्त गुणा अधिक हैं।
विवेचन – धर्मास्तिकाय एवं अधर्मास्तिकाय के प्रदेश समान हैं । पुद्गल उससे अनन्त गुणा अधिक हैं। अतः पुद्गल के प्रदेश भी अनन्त गुणा अधिक हैं। समय उनसे भी अनन्त गुणा अधिक है— जैसे की पूर्व गाथा में स्पष्ट किया हैं तथा समय से अनन्त गुणे आकाश के प्रदेश हैं।
तत्त्वार्थकार ने अध्याय ५ में द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या इस प्रकार बताई है— धर्म और अधर्म के असंख्यात प्रदेश हैं। एक जीव के भी असंख्यात प्रदेश हैं। आकाश के प्रदेश अनन्त हैं । पुद्गल द्रव्य के प्रदेश संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त हैं। परमाणु के प्रदेश नहीं होते हैं। उपर्युक्त गाथा २८४ के अनुसार ही
धर्माधर्मास्तिकाय - धर्मास्ति काय अधर्मास्तिकाय इन दोनो के प्रदेश असंख्यात हैं तथा जीव भी असंख्यात प्रदेशी हैं।
प्रदेश- वस्तु का ऐसा अविभाज्य अंश है जिसके फिर टुकड़े न हो सके। परन्तु यह स्कन्ध के साथ जुड़ा होने के कारण प्रदेश कहलाता हैं।
परमाणु - परमाणु भी ऐसा ही अविभाज्य अंश है परन्तु स्कन्ध से अलग हो जाने कारण उसे 'परमाणु' संज्ञा दी जाती हैं।
धर्म-अधर्म ये दोनों एक-एक इकाई रूप हैं। उनके अविभाज्य अंश भी असंख्यात असंख्यात हैं परन्तु उक्त दोनों द्रव्य ऐसे हैं जिनके असंख्य अविभाज्य अंश केवल बुद्धि से कल्पित किये जा सकते हैं, दे मूलतः स्कन्ध से पृथक् नहीं
किये जा सकते।
जीव-जीव द्रव्य भी असंख्य प्रदेशी हैं तथा यह भी अखंड इकाई है परन्तु वह संख्या की अपेक्षा स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में अनन्त है अर्थात् जीव द्रव्य अनन्त हैं परन्तु एक जीव के प्रदेश असंख्यात ही हैं।
पुल - पुल के स्कन्ध चारों द्रव्यों की तरह निश्चित नहीं हैं। कोई पुद्गल स्कन्ध संख्यात प्रदेशी, कोई असंख्यात प्रदेशी, कोई अनन्त प्रदेशी तथा कोई अनन्तानन्त प्रदेशी होता है।
पुद्गल के अतिरिक्त अन्य चारों द्रव्य अविभाज्य हैं परन्तु पुगल द्रव्य विभाजित होता है। पुनः वे चारों द्रव्य अमूर्त हैं तथा पुद्रल द्रव्य मूर्त हैं पुगल में संयोग