Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 282
________________ अल्पबहुत्व-द्वार २२१ विशेषाधिक लोभ कषायी हैं। चारों कषाय चारों गतियों में होने के कारण यह 'अनन्त' शब्द का प्रयोग किया गया है। ७. ज्ञान-अज्ञान-सबसे कम मन:पर्ययज्ञानी, उनसे असंख्यात गुणा अधिक अवधिज्ञानी, उनसे विशेषाधिक मतिश्रुत शानी, उनसे असंख्यात गुणा अधिक विभंगज्ञानी, उनसे अनन्त गुणा अधिक केवल ज्ञानी तथा उनसे अनन्त गुणा अधिक मतिश्रुत अज्ञानी हैं। ८. विरत-(संयम) सबसे कम सर्वविरति धर (मुनि) उनसे असंख्यात गुणा अधिक देश विरति (गृहस्थ) उनसे अनन्त गुणा अधिक नो विरताविरत तथा उनसे अनन्त गुणा अधिक अविरत हैं। ९. दर्शन- अवधिदर्शनी सबसे कम, चक्षुदर्शनी उनसे असंख्यात गुणा अधिक, केवलीदर्शनी उनसे भी अनन्त गुणा अधिक, उनसे भी अचक्षुदर्शनी अनन्त गुणा अधिक हैं। १०. लेश्या- सबसे कम शुक्ल-लेश्या वाले जीव, उनसे सख्यात गुणा अधिक पन-लेश्या वाले जीव, उनसे संख्यात गुणा अधिक तेजो-लेश्या वाले जीव और उनसे अनन्त गुणा अधिक अलेशी (सिद्ध) होते हैं। उनसे भी अनन्त गुणा अधिक कापोत-लेश्या वाले, उनसे विशेषाधिक नील-लेश्या वाले तथा उनसे भी अनन्तगुणा अधिक कृष्ण-लेश्या वाले जीव हैं। लेश्या का सद्भाव चारों गतियों में है। ११. सम्यक्त्व-(दृष्टि) सबसे कम मिश्रदृष्टि जीव हैं, उनसे अनन्त गुणा अधिक सम्यग्दृष्टि जीव तथा उनसे भी अनन्त गुणा अधिक मिथ्यादृष्टि जीव है। अनन्त शब्द का प्रयोग चारों गतियों की अपेक्षा से किया गया है। १२. भव्यत्व- सबसे कम अभव्य जीव हैं। उनसे भव्याभव्य रूप सिद्ध जीव अनन्त गुणा अधिक है तथा उनसे अनन्त गुणा अधिक भव्य जीव हैं। १३. संझी-संज्ञी जीव सबसे कम हैं, उनसे नो संज्ञी अनन्त गुणा (सिद्ध) अधिक हैं तथा उनसे भी असंज्ञी जीव अनन्त गुणा हैं। १४, आहार-अनाहार के जीव सबसे कम हैं, उनसे असंख्यात गुणा अधिक आहारक जीव होते हैं। विग्रह गतिवर्ती जीव, समुद्घाती, अयोगी तथा सिद्ध के अतिरिक्त सभी जीव आहारक हैं। उपरोक्त चौदह मार्गणा के अतिरिक्त भी अल्प-बहुत्व की विचारणा इस प्रकार है।

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