Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 279
________________ २२६ जीवसमास काय-रहित सिद्ध है तथा उनसे अनन्त गुणा वनस्पतिकाय के जीव हैं। विवेचन- सबसे कम त्रसकाय के जीव हैं। उनसे असंख्यात गुणा अधिक अग्निकाय के जीव हैं। उनसे पृथ्वीकाय आदि के जीव अनुक्रम से अधिक हैं। उनसे वायुकाय के जीव अधिक है। वायुकाय से सिद्ध अनन्त गुणा अधिक हैं तथा उनसे वनस्पतिकाय के जीव अनन्त गुणा अधिक है। गुणस्थान उवसामगा प थोवा खवग जिणे अप्पमत्त इसरे य। कमसो संखेज्जगुणा देसविरय सासणेऽसंखा ।। २७७।। मिस्साऽसंखेज्जगुणा अविरयसम्मा तओ असंखगुणा। सिवाय अणंतगुणा तत्तोमिच्छा अणंतगुणा ।। २७८।। गावार्थ- गणस्थानों की अपेक्षा से उपशामक सबसे कम होते हैं। उनसे अधिक क्षपक, उनसे अधिक जिन, उनसे अधिक अप्रमत्तसंयत तथा संख्यात गुणा उनसे अधिक प्रमत्तसंयत होते हैं। उनसे अधिक देशविरति, उनसे अधिक सास्वादनी, उनसे अधिक मिश्र और उनसे अधिक अविरति सम्यक्त्व क्रमश: असंख्यगुणा अधिक हाते हैं। उनसे सिद्ध अनन्त गुणा अधिक हैं तथा सिद्धों से मिथ्यात्वी अनन्त गुणा होते हैं। विवेचन-यहाँ उपशामक से तात्पर्य श्रेणी आरूढ उपशामक तथा उपशान्त मोही है। क्षपक से तात्पर्य श्रेणी आरूढ क्षपक तथा क्षीण मोही है। ये दोनों प्रकार के जीव कमी होते हैं तथा कभी नहीं होते हैं। पर यदि होते हैं तो उसमें उपशामक कम तथा क्षपक अधिक होते हैं। किन्तु कभी-कभी इसके विपरीत भी होता है। अर्थात् क्षपक कम तथा उपशामक अधिक होते हैं। क्षपक की अपेक्षा केवलीजिन संख्यातगुणा अधिक होते हैं। इनसे संख्यातगुणा अधिक अप्रमत्त गुणस्थानवी जीव होते हैं। उनसे संख्यात गुणा अधिक प्रमत्त गुणस्थानवर्ती साधु होते हैं। उनसे असंख्यात गुणा अधिक देशविरति श्रावक (मनुष्य तथा तिर्यञ्च दोनों) होते हैं। सास्वादनी कभी बिल्कुल नहीं होते हैं। यदि होते हैं तो जघन्य से एक, दो तथा उत्कृष्ट से चारों गतियों में होने के कारण असंख्यात गुणा अधिक होते हैं। मिश्र अर्थात् सम्यक्मिथ्यादृष्टि जीव होते है। सास्वादनी जीवों से संख्यात गुणा अधिक अविरत सम्यक्त्वी होते हैं। ये हमेशा संख्यात होते हैं। उनसे सिद्ध अनन्त गुणा होते हैं। उनसे मिध्यादष्टि अनन्त गुणा अधिक होते हैं क्योंकि सर्व निगोद के जीव मिथ्यादृष्टि ही होते हैं।

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