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जीवसमास
गावार्थ- सबसे कम मनुष्यनी (मानव-स्त्री) हैं। उससे असंख्यात गुणा अधिक मनुष्य हैं। मनुष्य से असंख्यात गुणा अधिक नारकी हैं। नारकी से असंख्यात गुणा अधिक तिरियचिनी, उनसे संख्यात गुणा अधिक देवियों हैं। उनसे अनन्तगुणा अधिक सिद्ध हैं तथा सिद्ध से अनन्त गुणा अधिक तियंच हैं।
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विवेचन - अन्य ग्रन्थों में पुरुष की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक बताई हैं तथा यहाँ स्त्रियाँ सबसे कम बतायी गई हैं। इसका क्या कारण है? उत्तर- गर्भज मनुष्यों की अपेक्षा से स्त्रियाँ अधिक हैं पर सम्मूर्च्छिम मनुष्यों की अपेक्षा से कम है। स्त्रियाँ संख्यात तथा सम्मूर्च्छिम मनुष्य असंख्यात गुणा है ।
प्रज्ञापनासूत्र के महादण्डक द्वार में समग्र रूप से जीवों के अल्प- बहुत्व की चर्चा की गई है। उस युग में आचार्यों ने जीवों की संख्या का तारतम्य बताने का प्रयत्न किया है तथा मनुष्य हो, देव हों या तिर्यञ्च हो सभी में पुरुष की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या अधिक मानी गई। मनुष्यों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ सत्ताइस गुण और सत्ताइस अधिक होती हैं। सिद्ध उनसे अनन्त गुणा हैं तथा तिर्यंच सिद्ध से अनन्त गुणा हैं।
यहाँ तिर्यंच में निगोद को भी सम्मिलित कर लेना चाहिये।
नरकगति आदि
थोवा य तमतमाए कमसो घम्मतया असंखगुणा ।
योवा तिरिक्पज्जत संख तिरिया अनंतगुणा ।। २७३ ।।
माथार्थ - अन्तिम सातवीं तमस्तमप्रभा नारकी में सबसे कम नारकी जीव हैं। फिर अनुक्रम से असंख्यात गुणा उलटेक्रम से प्रथम नरक तक जानना चाहिये। तिर्यच में सबसे कम तिरियचिनियाँ हैं। उनसे असंख्यात गुणा अधिक पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च हैं तथा उनसे अनन्त गुणा एकेन्द्रियादि तिर्यच हैं।
विवेचन - सातवीं पृथ्वी में सबसे कम नारकी हैं। फिर क्रमशः उत्तरोत्तर छ: नरकों में एक-दूसरे से असंख्यात गुणा अधिक समझना चाहिए।
तिर्यञ्च गति में सबसे कम तिर्यञ्च स्त्रियाँ हैं। उनसे असंख्यात गुणा अधिक पर्याप्त तिर्यश्च पश्चेन्द्रिय जीव हैं। पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च से एकेन्द्रिय तिर्यञ्चादि अनन्त गुणा अधिक हैं। ज्ञातव्य है कि तिर्यच गति में भी सम्मूर्च्छिम तथा गर्भज पर्याप्त मिलाने पर तिर्यञ्चनियाँ कम हैं। मात्र गर्भज तिर्यञ्चं जीवों की अपेक्षा तो तिरियचिनियाँ अधिक ही हैं।