Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 275
________________ २२२ जीवसमास और उन्हें अवकाश देते हैं। समय, आवलिका आदि व्यवहार काल से पारिणामिक भाव हैं। पुद्गल के चारों रूपों— स्कन्ध, देश, प्रदेश एवं परमाणु में सतत् रूप से औदयिक तथा पारिणामिक भाव चलता रहता है। सातवां भावद्वार समाप्त।

Loading...

Page Navigation
1 ... 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285