Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 273
________________ जोवसपास प्रश्न – किसके क्षयोपशम से किस लब्धि की प्राप्ति होती है? - १. ज्ञानावरण के क्षयोपशम से चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान प्राप्त होते हैं। २. दर्शनावरण के क्षयोपशम से तीन दर्शन प्राप्त होते हैं। २२० ३. अप्रत्याख्यानी कषाय चतुष्क के क्षयोपशम से देशविति चारित्र प्राप्त होता हैं। ४. दर्शन सप्तक (अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क एवं तीन प्रकार का दर्शन मोह) के क्षयोपशम से क्षायोपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। ५. चारित्र मोहनीय के क्षयोपशम से चारों चारित्रों की प्राप्ति होती है। ६. अन्तरस्य कर्म के क्षयोपशम से पाँच लब्धियाँ प्राप्त होती है। प्रश्न- पाँचो लब्धियों आपने क्षायिक भाव की कही तथा क्षायोपशमिक की भी कही, इसका कारण क्या हैं? उत्तर - क्षय से प्राप्त पाँचों लब्धियाँ केवली को होती है तथा क्षायोपशमिक भाव से प्राप्त पाँचों लब्धियाँ छद्यस्थ को होती हैं। दोनों में यही अन्तर है। औदयिक तथा पारिणामिक भाव कापसाकसाथ अन्नाण अस्य अस्सण्णी । मिच्छाहारे उदया जियभष्वियरतिबलहावो ।। २६९ ।। गाथार्थ - गति, काय, वेद, लेश्या, कषाय, अज्ञान, अविरति असंज्ञीत्व, मिथ्यात्व और आहारकत्त्व - ये औदयिक भाव हैं। जीवत्व, भव्यत्व तथा अभव्यत्व ये तीन पारिणामिक भाव हैं। विवेचन गति काय वेद लेश्या : चारों गतियाँ औदयिक भाव में आती हैं यथा-नरक गति, तिर्यञ्च गति मनुष्य गति तथा देवगति । I : नाम कर्म के उदय से जीव पृथ्वी आदि छःकायों, गति, जाति प्रत्येक शरीर तथा स्थावर शरीर आदि शरीरों को प्राप्त करता है। : नो कषाय (मोहनीय कर्म के उदय से जीव स्त्रीवेद, पुरुषवेद तथा नपुंसकवेद को प्राप्त करता है। : कषाय मोहनीय कर्म तथा तीनों योग के उदय से "योग परिणाम रूप लेश्या" होती हैं।

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