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भाव द्वार
२१९ औपशमिक सम्यक्त्व तथा औपशमिक चारित्र ये दो उपशम लब्धि हैं। विवेचन - उपर्युक्त नौ लब्धियाँ क्षायिक भाव से ही प्राप्त होती हैं। नौ क्षायिक लब्धियाँ
१. ज्ञानावरण का सम्पूर्णत: क्षय होने पर केवलज्ञान" प्राप्त होता है। २. दर्शनावरण का सम्पूर्णत: क्षय होने पर केवलदर्शन" प्राप्त होता है। ३. मोहनीय कर्म के दर्शन सप्तक अर्थात् चार अनन्तानुबन्धी कषाय तथा दर्शनमोहनीयत्रिक का क्षय होने से क्षायिक सम्यक्त्य" प्राप्त होता है। ४. सम्पूर्ण चारित्र मोहनीय का क्षय होने से क्षायिक चारित्र होता है। ५. ९. अन्तराय कर्म का क्षय होने पर दानादि पाँच लब्धियाँ प्राप्त होती हैं। दो उपशम लब्धियाँ
१. दर्शन सप्तक के उपशान्त होने पर औपशमिक सम्यक्त्व" होता है। २. चारित्र मोहनीय के उपशान्त होने पर औपशमिक चारित्र" होता है।
क्षायोपशमिक (मिश्र) माव
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नाणा व अण्णाणा तित्रि व दंसण लिगं च गिहिधम्मो । वेब च चारितं दग्णाग मिस्सगा भावा ।। २६८ ।।
गाथार्थ --- चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, गृहस्थधर्म, वेदक सम्यक्त्व, चार चारित्र तथा दानादि पाँच लब्धियाँ- ये मिश्र अर्थात् क्षायोपशमिक भाव में भी सम्भव है।
विवेचन
क्षायोपशमिक भाव के २१ भेद -
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चार ज्ञान अर्थात् मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधि ज्ञान तथा मन:पर्ययज्ञान, तीन अज्ञान अर्थात् मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान तथा विभंगज्ञान, तीन दर्शन अर्थात् चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन तथा अवधिदर्शन, देशविरति अर्थात् गृहस्थधर्म, वेदक समयक्त्व अर्थात् क्षायोपशमिक सम्यक्त्व |
चार चारित्र - सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि तथा सूक्ष्म
सम्पराय ।
पाँच लब्धियाँ - दान, लाभ, भोग, उपभोग तथा वीर्य लब्धि ।