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गति
अल्पबहुत्व- द्वार
योवा नरा नरेहि य असंखगुणिया हवंति नेरहया । ततो सुरा सुरेहि य सिद्धाणंता तओ तिरिया ।। २७१।।
गाथार्थ - चारों गतियो में मनुष्य सबसे कम हैं। मनुष्य से असंख्यात गुणा अधिक नारकी हैं। उनसे असंख्यात गुणा अधिक देवता हैं । देनों से अनन्त गुणा अधिक सिद्ध (मुक्तात्मा) हैं। सिद्धों से अनन्त गुणा तिर्यच हैं।
विवेचन - मुक्तात्मा एवं चारों गतियों के जीवों में गर्भज मनुष्य सबसे कम हैं। मनुष्यों का निवास क्षेत्र भी मात्र अढाई द्वीप हैं। उनसे असंख्यात गुणा अधिक जीव सात नरकों में रहे हुए हैं ।
उनसे भी असंख्यात गुणा अधिक देवता हैं। इन सबका क्षेत्र भी एक-दूसरे से अधिकाधिक है। देवों से अनन्त गुणा अधिक सिद्ध है तथा सिद्धों से अनन्त गुणा अधिक तिर्यच हैं।
इस प्रकार गति की अपेक्षा से तिर्यय गति में सबसे अधिक जीन हैं।
प्रशापनासूत्र के २७वें महादण्डक के अनुसार अधोलोक में पहली से लेकर सातवी नरक तक क्रमशः जीवों की संख्या घटती जाती है। ऊर्ध्वलोक में सबसे ऊपर के देवलोक से नीचे के देवलोकों में संख्या में वृद्धि होती हैं। सबसे ऊपर अनुत्तर विमानवासी देवों की संख्या सबसे कम हैं, फिर नीचे के देवों की संख्या क्रमशः बढ़ती जाती है। वैमानिकों में सर्वाधिक संख्या सौधर्म देवों की हैं। सौधर्म से अधिक भवनपति, उनसे अधिक व्यन्तर देवों तथा ज्योतिष्क देवों की हैं। फिर जैसे-जैसे इन्द्रियाँ कम होती जाती हैं वैसे-वैसे जीवों की संख्या अधिक होती जाती है। पर्याप्त एवं संज्ञी (विकसित) की अपेक्षा अविकसित एवं असंज्ञी तिर्यंचों को संख्या अधिक है। जबकि सबसे कम मनुष्यों की संख्या हैं।
स्त्री आदि
थोबाड मणुस्सीओ नरनत्यतिरिक्खिओ असंखगुणा । सुरवेक्षी संखगुणा सिन्हा तिरिया अनंतगुणा ।। २७२ ।।