Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 269
________________ भाव-द्वार जीव के भाव उक्सम रवायो पीसो उडओ परिणाम सन्निवाओ य एसा जीव समासो परिणामुदओ अजीवाणं।। २६५।। गाथार्थ औपशमिक, क्षायिक, मिश्न (क्षायोपशमिक) औदयिक, पारिणामिक तथा सन्निपातिक– ये जीवों की छ; प्रकार की भावदशा होती है। अजीवीं में पारिणामिक और औदयिक ये दो प्रकार की अवस्था होती हैं। विवेचन १. औपशमिक-- पानी के नीचे जमी हुई मिट्टी के तुल्य या राख के नीचे दबी हुई अग्नि के तुल्य कर्मों को उपशमित करने से जो भाव होते हैं, वे औपशमिक भाव कहलाते हैं। २. क्षापिक- स्वच्छ हुए पानी के समान या बुझी हुई अग्नि के समान जो भाव कर्मों के क्षय से प्राप्त होते हैं वे क्षायिक भाव कहलाते हैं। २.मायोपशामिक- आंशिक रूप से कर्मों के क्षय से और आंशिक रूप से कर्मों के उपशमन से जो भाव (अवस्था) प्राप्त होती है वह क्षायोपशमिक कहलाती है। ४. आदमिक-ज्ञानावरणादि कर्मों का उदय में आना औदायिक भाव है। ५. पारिणामिक-द्रव्य में जो स्व या परपर्याय रूप परिणमन चल रहा है वह पारिणामिक भाव है। ६. सनिपातिक-सत्रिपात का अर्थ है संयोग। जो उपर्युक्त कहे भावों का संयोग करे वह सत्रिपातिक भाव है। अजीव में स्वद्रव्य से सम्बन्धित उदय तथा स्वद्रव्य से सम्बन्धित परिणमन चलता है। उदय में रूप, वर्ण, गंध, रस, स्पर्शादि तथा परिणमन में विगलन, विध्वंसनादि परिवर्तन सतत चलता रहता है, यथा शरीर, फल आदि में __ औपशमिक, क्षायिक तथा क्षायोपशमिक भाष सो जीव में ही संभव हैं अजीव में नहीं। किन्तु ओदयिक तथा पारिणामिक भाव जीव-अजीव दोनों में ही पाये जाते हैं फिर भी उनके अनुभव की क्षमता जीव में है अजीव में नहीं।

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