Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 249
________________ जीवसमास उपसंहार एत्य य जीवसमासे अणुमज्जिय सुमनिउणमाकुसले। सहमं कालविभागं विमएज्ज सुष्मि उवउत्तो ।। २४०।। गाचार्भ- सूक्ष्म तथा निपुण मति से युक्त कुशल जीवों को इस जीवसमास रूपी सागर में डुबकी लगा करके श्रुतज्ञान में उपयोग वाले होकर सूक्ष्म काल विभाग को जानना चाहिये। अजीव द्रव्य का काल तिष्णि अणा अणंता तीया खलु अणाइया संता । साअणंता एसा सपओ पुण वद्यमाणमा ।। २४१।। गाथार्थ-तीन द्रव्य अनादि-अनन्त हैं। काल द्रव्य तीन प्रकार का है। उसमें १. अनादि-सान्त, २. सादि-अनन्त तथा ३. वर्तमान काल "समयम' मा ! विवेचन-तीनों द्रव्य अर्थात् १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय तथा ३. आकाशास्तिकाय ये अनादिकाल से हैं तथा अनन्तकाल तक रहेंगे। काल द्रव्य भी सामान्यत: तो अनादि-अनन्त ही है पर विशेष रूप से विचार करने पर उसके तीन भेद हैं- १. भूत, २. वर्तमान तथा ३. भविष्य। अद्धा से आशय काल का है। इनमें भूतकाल अनादि-सान्त होता है, २. वर्तमान काल "समय" रूप होता है तथा ३. भविष्यकाल सादि-अनन्त होता है। पुद्गल का काल कालो परमाणुस्स य दुपएसाईणमेव खंघाणं । समओ जहपणमिपरो उस्सप्पिणिओ असंखेज्जा।।२४२।। कालधार५ गाथार्थ- परमाणु तथा द्विप्रदेशी आदि विभिन्न स्कन्धों का काल जघन्यतः एक समय तथा उत्कृष्टतः असंख्यात उत्सर्पिणी पर्यन्त समझना चाहिये। विवेचन-परमाणु, द्वयणुक, त्यणुक, चतुरणुक आदि स्कन्धों का सत्ताकाल जघन्यतः से एक समय तथा उत्कृष्टतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालपर्यन्त समझना चाहिये। पांचवां "कालद्वार" समाप्त

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