Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 232
________________ काल द्वार अविरत सम्पक् दृष्टि आदि गुणस्थानों का काल - तेसीस उपहिनामा साहीमा हुति अजयसम्याणं । देसजइसजोगणिय पुव्वाणं कोडिदेसूणा ।। २२३ ।। बालार्थ एक जीव की अपेक्षा रत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का काल साधिक तैतीस सागरोपम है। देशविरत तथा सयोगीकेवली गुणस्थान का काल कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष का हैं। विवेचन- एक जीव की अपेक्षा से अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का काल साधिक तैतीस सागरोपम है। वह इस प्रकार है--- कोई जीव उत्कृष्ट स्थिति वाले क्षायिक सम्यक्त्व के साथ अनुत्तर विमान में उत्पन्न हो तो वहाँ पर उसकी आयु तैतीस सागरोपम होगी, पुनः वहाँ से च्यवकर मनुष्य जीवन में जब तक विरति चारित्र ग्रहण न करे, तब तक वह अविरत सम्यक्त्वी रहेगा। इस प्रकार इसका काल साधिक तैतीस सागरोपम कहा गया है। एक जीव की अपेक्षा से देशविरत तथा सयोगकेवली गुणस्थानों का उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष है। यथाआठ वर्ष का बालक देशविरति या सर्वविरति स्वीकार कर केवलज्ञान प्राप्त करें तो इसका काल आठ वर्ष कम पूर्वकोटिं वर्ष होगा। JOL क्षीणमोह एवं अयोगकेवली गुणस्थान का काल १७९ एएसिं च जहणं खथगाण अजोगि खीणमोहाणं । नाणाजी एवं परापर ठिई मुहुसंतो ।। २२४ ।। गावार्थ- पूर्व गाथा में कथित तीनों गुणस्थानों का जघन्य काल तो अन्तर मुहूर्त ही है। क्षपकश्रेणी पर आरुढ़ क्षीणमोह गुणस्थान एवं अयोगीकेवली गुणस्थान का उत्कृष्ट तथा जघन्य काल एक जीव की अपेक्षा एवं अनेक जीवों की अपेक्षा से अन्तर्मुहूर्त परिमाण जानना चाहिये । विवेचन- गाथा क्रमांक २२३ में हमने अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत सम्यग्दृष्टि तथा सयोगकेवली गुणस्थानों का उत्कृष्ट काल बताया था। इस गाथा में इन तीन गुणस्थानों का जघन्यकाल काल अन्तर्मुहूर्त परिमाण बताया गया है। प्रश्न जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त किस अपेक्षा से बताया गया है? अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत तथा सयोगीकेवली गुणस्थान का १. अविरत सम्यग्दृष्टि औपशमिक सम्यक्त्व पाकर पुनः मिथ्यात्व में आने पर, २. देशविरत को स्वीकार करके उसका अन्तर्मुहूर्त में त्याग कर देने पर तथा

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