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जीवसमास
काययोग
काओगणतकालं वाससहस्सा उराल बावीसं।
समयतिर्ग कम्माओ सेसा जोगा मुहुनतो ।।२२।। गामार्म-काययोग अनन्तकाल तक होता है। मात्र औदारक काययोग बाईस हजार वर्ष तक, मात्र कार्मण काययोग तीन समय तक तथा शेष योग अन्तर्मुहूर्त तक होते हैं।
विवेचन-जो एकत्रित करे वह काय तथा जिससे जीव कर्मों के साथ जुड़े वह योग हैं। काय अर्थात् शरीर का कर्मों से योग होना काययोग कहलाता है।
१. काययोग-- इसमें जोव अनन्तकाल तक रहता है। किन्तु मनोयोग और वचनयोग से रहित मात्र काबयोग में रहने वाले एकेन्द्रिय जीव होते हैं। ये एकेन्द्रिय असंख्य पुद्गलपरावर्तन अर्थात् अनन्तकाल तक काययोग में ही रहते हैं। यहाँ अन्य दोनों योगो का अभाव है। इस प्रकार एकेन्द्रिय जीव को मात्र काययोग अनन्तकाल तक होता है।
२. औदारिक काययोग-मात्र औदारिक काययोग अधिकतम बाईस हजार वर्ष तक पृथ्वीकायिक जीवों को होता है।
प्रश्न- असंख्य वर्ष आयु वाले मनुष्य तथा तिर्यञ्च को तीन पल्योएम की उत्कृष्ट आयु तक औदारिक काययोग रहता है, फिर बाईस हजार वर्ष ही क्यों कहा गया?
उत्तर- यह सत्य है. परन्तु यहाँ बात मात्र औदारिक काययोग की है मन-वचन युक्त काययोग की नहीं। अत: एक भव में मात्र औदारिक काययोग को प्राप्त करने वाले की उत्कृष्ट स्थिति बाईस हजार वर्ष बतायी गई है।
३.कार्मण काममोग-विग्रहगति की अपेक्षा से मात्र कार्मण काययोग तीन समय का होता है। विग्रहकाल में जीव को मात्र कार्मण काययोग तथा उससे अनादि सम्बन्ध वाला तेजसू काययोग रहता है। यहाँ कार्मण के साथ तेजस् का अध्याहार कर लिया गया है क्योकि ये दोनों शरीर सदा साथ-साथ रहते हैं। तत्त्वार्थकार ने कहा है- अनादि सम्बन्ध, अप्रतिमाते, सर्वस्य (तत्वार्थसूत्र २/४१-४३) दोनों शरीर का अनादि सम्बन्ध है, दोनों अप्रतिपाती है तथा समस्त संसारी जीवों के होते हैं।
चार समय की विग्रह गति में भी तीन समय का ही कार्मण काययोग होता है। शेष सभी अर्थात् बैंक्रियकाययोग, आहारककाययोग, मनोयोग तथा वचनयोग का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त जितना है वह कैसे?