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काल-द्वार
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होती है। चन्द्रों की देवियों की अर्धपल्य तथा पांच हजार वर्ष सूर्यो की देवियों की अर्धपल्य और पाँच सौ वर्ष, ग्रहों की देवियों की अर्धपल्य, नक्षत्र की देवियों की चतुर्थ पल्य से कुछ अधिक तथा तारागण की देवियों की पल्य के आठवें भाग से कुछ अधिक उत्कृष्ट आयु होती है। (बृहद् संग्रहणी - गाथा 19 से ११३ ।
सौधर्मादिक देवविमानों में नीचे के देवों की जो उत्कृष्ट आयु हैं, वही ऊपर के देवलोकों की जघन्य आयु होती हैं। इसी प्रकार सौधर्म देवलोक की दो सागरोपम की उत्कृष्ट आयु ऊपर के सनत्कुमार देवलोक की जघन्य आयु है। ईशान देवलोक की दो सागरोपम से कुछ अधिक की जो उत्कृष्ट आयु है, वही ऊपर के माहेन्द्र देवलोक की जघन्य आयु होती हैं।
वैमानिक देवों की आयु
दो साहि सत्त साहिब दस चउदस सत्तरेव अङ्कारा । एक्काहिबा म एतो सक्काइसु सागरुवमाणा ।। २०६ ।। गाथार्थ - देवलोकों में क्रमशः दो, दो से कुछ अधिक, सात, सात से कुछ अधिक, दस, चौदह, सतरह, अठारह फिर क्रमशः से एक-एक की वृद्धि पूर्वक सर्वार्थसिद्ध विमान तक तैतीस सागरोपम को उत्कृष्ट आयु जाननी चाहिये । सौधर्म आदि देवलोकों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु सम्बन्धी सारिणी
१२ बेवर्लाक
देवलोक अघन्यायु उत्कृष्टायु
१ सौधर्म १ पश्योपम २ ईशान १ पल्थोपम से अधिक
३ सनत्कुमार २ सागरोपम ४ माहेन्द्र
५ ब्रह्म ६. लांतक
७ महाशुक्र
१ चैवेयक तथा ५ अनुसार विमान ग्रैवेयक
जघन्यायु उत्कृष्टायु
१ सुदर्शन
२ सागरोपम २ सुप्रतिबद्ध
२२ सागरोपम २३ सागरोपम २३ सागरोपम २४ सागरोपम २४ सागरोपम २४ सागरोपम
२ सागरोपम ३ मनोरम से अधिक
७ सागरोपम ४ सर्वतोभद्र २ सागरोपम ७ सागरोपम ५ विशाल से अधिक से अधिक
२५ सागरोपम २५ सागरोपम २६. सागरोपम २४ सागरोपम
२७ सागरोपम २८ सागरोपम
२७ सागरोपम १० सागरोपमा ६ सुमनस १० सागरोपम १४ सागरोपमा ७ सौमनस्य
२८ सागरोपम २१ सागरोपम
१४ सागरोपमा १७ सागरोपम ८ प्रीतिकर २५ सागरोपम ३० सागरोपम