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काल-द्वार
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गाधार्थ- जलचर, स्थलचर, खेचर तथा संमूर्छिम पर्याप्त की उत्कृष्टायु क्रमशः पूर्वकोटिवर्ष, चौरासी हजार वर्ष तथा बहत्तर हजार वर्ष है।
नोट-इस गाथा में सम्मृच्छिम अर्थात् स्त्री-पुरुष के संयोग के बिना उत्पन्न होने वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च की चर्चा की गई है। अब संयोग से उत्पन्न होने वाले गर्भज तिर्यञ्चों की आयु की चर्चा करेंगे।
सेसि तु गम्भयाणं उक्कासं होई पुख्यकोड़ीओ। तिणि म पल्ला भणिया पल्लस्स असंखभागो उ ।।२१०।।
गाथार्थ-जलचर, थलचर, खेचर, गर्भज पर्याप्त की उत्कृष्ट आयु क्रमश: पूर्वकोटि वर्ष, तीन पल्योपम तथा पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग होती है।
एएसिं च जहपणं उभयं साहार सबसुहमाणं ।
अंतोमुत्तमाऊ सव्वापज्जनाणं च ।।२११।।
गावार्थ- पूर्वगाथाओं में कहे गये सभी जीवों अर्थात् बादर-एकेन्द्रिय जीवों से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक के जीवों को जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त परिमाण होती है, किन्तु सभी सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों, साधारण वनस्पतिकाय के जीवो तथा सभी अपर्याप्त जीवों की उत्कृष्ट एवं जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त परिमाण ही होती है।
विवेचन- इस प्रकार गाथा २०७ से लेकर २१० तक विभिन्न जीवों की उत्कृष्ट आयु बतायी गयी थी। अब इस गाथा में पूर्व गाथा में कथित सभी बादर जीवों की जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त बतायी गयी है। किन्तु साधारण वनस्पतिकाय, पाँचों सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों तथा समस्त अपर्याप्त जीवों की उत्कृष्ट तथा जघन्यदोनों आयु अन्तर्मुहुर्त परिमाण बतलायी है। सर्वजीवानित आयु
एक्कगजीवाउठिा एसा बहुजीषिया उ सव्वद्ध। मणुयअपज्जत्ताणं असंखभागो ३ पल्लस्स ।। २१२।।
गावार्थ- अभी तक एक जीवाश्रित आयु की स्थिति बताई गयी थी अब सर्वजीवाश्रित आयु का सर्वकाल जानना चाहिये। अपर्याप्त मनुष्य तो पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितने ही होते हैं।
विवेधन-पूर्व गाथाओं में एक जीवाश्रित नारकों, देवों, मनुष्यों आदि की आयु बतायी गई थी। इस गाथा में सर्वजीव विषयक आयु बतायी गई। ऐसा कभी नहीं होता कि नरक नारकी जीवों से खाली हो जाये अर्थात् सारे नरक के जीव परकर दूसरे स्थान पर पहुँच जाये। ऐसा ही देव, मनुष्य, तिर्यञ्च आदि अन्य के विषय में भी समझना चाहिये।