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स्पर्शन्- द्वार
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अविरत सम्यक्त्वो तथा देशविरत मध्यलोक से अच्युतदेवलोक में जन्म लेने से छः रज्जु का स्पर्श करते हैं। मिश्रदृष्टि तिर्यञ्च या मिश्रदृष्टि मनुष्य का मिश्र गुणस्थान में मरण नहीं होने से वे अपने ही स्थान में लोक के असख्यातवें भाग का ही स्पर्श करते हैं।
विकलेन्द्रिय उत्पाद और समुद्घात अवस्था में सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते है। इसे प्रज्ञापनाकार ने भी स्वीकार किया है।
बाबरपज्जत्तावि व सबला विषला य समुहजववाए ।
सव्वं फोसंति जगं अह एवं फोसणाणुगमो । । ९९९ ।।
गाथार्थ - बादरपर्याप्त, सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय समुदघात या उपघात अवस्था में सम्पूर्ण लोक को स्पर्शित करते है। इस प्रकार स्पर्शना-द्वार जानना चाहिए।
विवेचन - पृथ्वीकाय आदि बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय, सम्पूर्ण इन्द्रियों वाले पचेन्द्रिय द्वीन्द्रिय आदि विकलेन्द्रिय समुद्घात अवस्था में या विग्रहगति रूप उपपात अवस्था में सर्वलोक का स्पर्श करते हैं। इस प्रकार जीव से सम्बन्धित लोक स्पर्शना द्वार को जानना चाहिये।
अजीव द्रव्य की लोक स्पर्शना
आइयुगं लोगफुडं गयग्रामणांगाडमेव सव्वगयं ।
कालो नरलोग फुडो पोग्गल पुण सव्वलोगफुडा ।। २०० ।। स्पर्शनाद्वारं ४ |
गाथार्थ - प्रथम दो द्रव्य लोक का स्पर्श करके रहते हैं। आकाश द्रव्य किसी को अवगाहन करके नहीं रहता पर वह सर्वलोक में हैं। व्यवहार काल मनुष्य लोक में व्याप्त हैं, किन्तु - पुद्गल सर्वलोक का स्पर्श करते हैं अर्थात् उससे व्याप्त हैं।
विवेचन – पाँच अजीव द्रव्य मे से धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करके रहते हैं। आकाश अनवगाढ है अर्थात् सभी द्रव्य (जीव- अजीव) आकाश के आश्चित हैं परन्तु आकाश किसी के आश्रित नहीं । 'आकाश लोकालोक मे हैं।
व्यवहार काल का वर्तन अढाई द्वीप अर्थात् मनुष्य लोक में है तथा पुद्गल सर्वलोकाकाश में व्याप्त है।
चौथा स्पर्शन-द्वार समाप्त