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जीवसमास
गाथार्थ - उस जम्बूद्वीप को सब तरफ से घेरे हुए, दुगुने विस्तार वाला लवण समुद्र है। उससे दुगुना विस्तार वाला घातकी खण्ड है तथा उससे दुगुना विस्तार वाला कालोदधि समुद्र हैं।
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विवेचन - पूर्व गाथा में बताया कि जम्बूद्वीप एक लाख योजन विस्तार वाला है। उससे दुगुना अर्थात् दो लाख योजन परिमाण लवण समुद्र हैं। उससे दुगुना अर्थात् चार लाख योजन परिमाण घातकी खण्ड है। उससे दुगुना अर्थात् आठ लाख योजन विस्तार परिमाण कालोदर तुम है।
लवण समुद्र का पानी खारा हैं तथा कालोदधि समुद्र का पानी शुद्ध पानी के स्वाद वाला है।
पुष्करार्ध द्वीप
तं पुण पुक्खर दीवो तम्मज्झे माणुसोत्तरो सेलो ।
एतावं नरलोओ वाहिं तिरिया य देवा म ।। १८७ ॥
गाथार्थ - उसके बाद पुष्कर द्वीप हैं। उन दोनों पुष्कर द्वीपों के मध्य मानुषोत्तर पर्वत है। यहाँ तक (अढ़ाई द्वीप तक) मनुष्य लोक हैं। उसके आगे तिर्यञ्च तथा देव हैं। विवेचन – कालोदधि समुद्र से पुष्कर द्वीप दुगुना अर्थात् सोलह लाख योजन विस्तार वाला है। इनके मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है। इस द्वीप तक ही मनुष्य का जन्म, मरण व निवास है। मनुष्यलोक से बाहर मनुष्य का जन्म एवं मरण नहीं होता । देव तथा तिर्यच मनुष्यलोक से भी बाहर पाये जाते हैं। अब आगे के द्वीप समुद्रों का वर्णन करते हैं।
असंख्य द्वीप समुद्र
एवं दीवसमुद्दा दुगुणगुणवित्वरा असंखेज्जा ।
एवं तु तिरिमलोगो सबंधुरमोदही जाव ।। १८८ ।।
गाथार्थ - इस प्रकार द्विगुणित- द्विगुणित विस्तार वाले असंख्य द्वीपसमुद्र स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त हैं। यह तिर्यगू लोक का वर्णन हुआ।
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विवेचन - अनुक्रम से सारे ही द्वीप समुद्र दुगुने - दुगुने विस्तार वाले हैं। पुष्कर द्वीप के बाद उससे दुगुने परिमाण तथा शुद्ध पानी के स्वाद वाला पुष्कर समुद्र है। उसके बाद वरुणवर द्वीप एवं वारुणी समुद्र मदिरा के स्वाद वाला है। उसके बाद क्षीरवर द्वीप एवं क्षीर समुद्र क्षीर (दूध) के स्वाद वाला है। उसके बाद घृतवर द्वीप एवं घृत समुद्र हैं उसके पानी का स्वाद घी के समान हैं। इससे आगे