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स्पर्शन्-द्वार
१५३ गाथार्थ- मध्यलोक के मध्य में वर्तल अर्थात् गोल संस्थान वाला जम्बूद्वीप है। वह जम्बूद्वीप एक लाख योजन विस्तार पाला है तथा उसके मध्य में नाभि तुल्य मेरुपर्वत है।
विवेधन- मध्यलोक के सम्बन्ध में गौतम स्वामो ने निम्न प्रश्न पूछे हैहे भगवन् ! १. जम्बूद्वीप कहाँ है?, २. यह कितना विशान है?, ३. इसका संस्थान कैसा हैं? तथा ४. इसका आकार एवं स्वरूप कैसा है? प्रभु ने उत्तर दिया- हे गौतम ! १. यह जम्बूद्वीप सर्वसमुद्रों के बीच में (सांभ्यन्तर) है। २. यह द्वीप-समुद्रों में सबसे छोटा है। ३. तेल में तले हुए पुए के समान, रथ के पहिये के समान, कमल की कर्णिकवत् तथा परिपूर्ण चन्द्रमा के ममान गोल है तथा ४. एक लाख योजन लम्बा चौड़ा है।
प्रश्न--- इसे जम्बूद्वीप क्यों कहते हैं ?
उत्तर- इस द्वीप के उत्तर कुरु में अनादिनिधन, पृथ्वी से बना हुआ अकृत्रिम जम्बूवृक्ष है जिसके कारण यह जम्बूद्वीप कहलाता है। मेरुपर्वत
इस जम्बूरोप के बीच में मेरुपर्वत है। यह एक लाख योजन ऊंचा है। इसमें से एक हजार योजन जमीन में है शेष निन्यानवें हजार योजन समतल भूमि से चूलिका तक है।
प्रारम्भ से मेरु का व्यास (घेरा) दस हजार योजन है किन्तु क्रमश: घटते-घटते ऊपर एक हजार योजन चौड़ा रह जाता है। (१) पृथ्वी के भीतर एक हजार योजन वाला प्रथम भाग है। (२) पृथ्वी पर तिरसठ हजार योजन परिमाण दूसरा भाग है। (३) उसके ऊपर छत्तीस हजार योजन परिमाण तीसरा भाग है। उस मेरुपर्वत पर चार वनखण्ड हैं (१) जमीन पर भद्रशालवन। (२) जमीन से पाँच सौ योजन की ऊंचाई पर नन्दनवन (३) नन्दनवन से बासठ हजार पाँच सौ (६२५०० योजन की ऊँचाई पर सौमनसवन है (४) सौमनसवन से छत्तीस हजार योजन पर पाण्डुकवन है।
पाण्डुकवन की चारों दिशाओं में चार शिलाएँ है। जहाँ जिनेश्वर भगवन्तों का जन्म महोत्सव होता है। इस वन के मध्य में शिखा समान रलमय चूलिका (पर्वत की चोटी) है।
तं पुण लवणो दुगुणेण वित्थडो सवओ परिक्खिा । तं पुण धामासंबो सगुणों तं च कालोओ ।। १८६ ।।