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क्षेत्र-द्वार गर्घज जलचर, थालघर
जलगम्भयपपत्ता उक्कोस हुति जोयणसहस्सं । थलगन्भयपज्जत्ता छग्गाउक्कोसगुल्वेहा ।।१७५।।
गाथार्थ- जलचर गर्भज पर्याप्त का उत्कृष्ट देहमान एक हजार योजन है। स्थलचर गर्भज पर्याप्त का देहमान छ: गव्यूति (कोस) है।
विवेचन- गर्भज पर्याप्त जलचर का उत्कृष्ट देहमान स्वयंभूरमण समुद्र में रहे मत्स्य की अपेक्षा से है। स्थत्नचर गर्भज पर्याप्त का उत्कृष्ट देहमान देवकुरु उत्तरकुरु में रहे हाथी आदि को अपेक्षा से है।
नोट- १. जलचर, थलचर (२ चतुहाद, ३ भुजपरिसर्प, ४ उरपरिसर्प) तथा ५. खेचर - इन पाँचों के सम्मूर्छिम. गर्भज पर्याप्त, अपर्याप्त (५४२४२=२०) बीस भेद हुए। यहां तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय की चर्चा पूर्ण हुई। एकेन्द्रिय
अंगुलअसंख भागो बायरसुगुमा य सेसया काया।
सव्वेसिं च जहण्णं मणुयाण तिगाउ उक्कोसं ।।१७६।।
गाथार्थ-- शेष सभी कायों अर्थात् पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय तथा वायुकाय में बादर तथा सूक्ष्म का जघन्य तथा उत्कृष्ट से देहमान अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना ही है। मनुष्य का उत्कृष्ट देहमान तीन कोस है।
विवेचन- वनस्पतिकाय की चर्चा गाथा १७० में हो गयी। शेष सभी एकेन्द्रिय जीवों का जघन्य एवं उत्कृष्ट देहमान प्रस्तुत गाथा में बताया गया है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय आदि सभी का जघन्य से देहमान तो अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण है।
मनुष्य का देहमान जघन्य परिमाण अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण तथा उत्कृष्ट तीन कोस परिमाण है।
भवणवाइवाणमंतरजोड्सवासी य सत्तरयणीया ।
सक्का, सत्तरयणी एक्केक्का हाणि जावेक्का ।।१७७।। गाभार्थ- भवनपति, व्यंतर तथा ज्योतिष्क देवों का देहमान सात हाथ है। शक्र आदि देवों का सात हाथ, तदनन्तर दो-दो देवलोकों के पश्चात् क्रमश: एक-एक हाथ की हानि जानना।
अवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क तथा सौधर्म एवं ईशान देवलोक तक देवों का उत्कृष्ट देहमान सात हाथ है। तदनन्तर एक-एक कम करते जाना यथा