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जीवसमास अनवस्थित पल्य बने और खाली हुए। इस शलाका पल्य के भर जाने पर एक-एक सर्षप प्रतिशलाका में डाला जाता है। प्रतिशलाका के सर्षप की संख्या से ज्ञात होता है कि कितनी बार शलाका पल्य भरा और खाली हुआ। प्रतिशलाका पल्य के एक-एक बार मर जाने और खाली हो जाने पर एक-एक सर्षप महाशलाका पल्य में डाल दिया जाता है। जिससे कितनी बार प्रतिशलाका पल्य भरा गया व खाली किया गया है, यह ज्ञात हो जाता है।
इसमें जब शलाका पल्य भर जाता है तो मूलस्थान से अन्तिम सर्षप वाले स्थान तक विस्तीर्ण अनवस्थित पल्य बनाकर उसे सर्पप से भर देना चाहिये। इससे अब तक में अनवस्थित पल्य और शलाका पल्य सर्षपों से भर गये इन दो में से शलाका पल्य के एक-एक सर्षप को उक्त विधि के अनुसार आगे के द्वीप समुद्र में डालते जाना चाहिये। एक-एक सर्पप निकालने से जब शलाका पल्प बिल्कुल खाली हो जाय तथा उसके खाली हो जाने का सूचक एक सर्षप प्रतिशलाका पल्य में डालना चाहिये। अब तक अनवस्थित पल्य सर्वप से भरा पड़ा है और शलाका पल्य खाली हो चुका है और प्रतिशलाका में एक सषेप पड़ा है।
इसके पश्चात् अनवस्थित पल्य के एक-एक सर्षप को आगे के द्वीप समुद्र में डालते जाना चाहिये और उसके खाली होने पर एक सर्षप शलाका पल्यमें डालना! पुनः मूल स्थान से जहां तक अन्तिम सर्वप डाला वहां तक नया अनवस्थित पल्य बनाना तथा उक्त विधि से खालो करते जाना चाहिये तथा प्रत्येक अनवस्थित पल्य के खाली हो जाने पर एक-एक सर्षप शलाका पल्य में डालते जाना चाहिये। ऐसा करते-करते जब शलाका पल्य भर जाये तब जिस स्थान पर अन्तिम सर्षप डाला है वहाँ से मूलस्थान तक का विस्तीर्ण नया अनवस्थित पल्य बनाकर उसे भी सर्षपों से भर देना चाहिये। अब तक अनवस्थित और शलाका पल्य भरे हुए हैं और प्रतिशलाका में एक सर्षप है।
__ शलाका पल्य को पूर्व विधि के अनुसार फिर से खाली कर देना चाहिये और उसके खाली हो चुकने पर एक सर्षप प्रतिशलाका में रखना चाहिये। अब अनवस्थित पल्य भरा है तथा शलाका पल्य खाली है तथा प्रतिशलाका पल्य में दो सर्वप पड़े हुए हैं।
आगे फिर इसी विधि से अनवस्थित पल्य को खाली करना और एक-एक सर्षप शलाका पल्य में डालना चाहिये इस प्रकार शलाका पल्य को बार-बार भर कर उक्त विधि के अनुसार खाली करते जाना और एक-एक सर्षप प्रतिशलाका पल्य में डालते जाना चाहिये। ऐसे करते हुए जब वह प्रतिशलाका पल्प भर जाये तब अनवस्थित पल्य द्वारा शलाका को भरना और अनवस्थित को भी भर कर रखना। अब तक अनवस्थित, शलाका, प्रतिशलाका ये तीनों पल्य भर गये। अब