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जीवसमास (२) मध्यम संख्यात-- दो से ऊपर और उत्कृष्ट-संख्यात से पूर्व तक की अन्तरालवी सब संख्याये मध्यम-संख्यात हैं। समझने के लिये यह कल्पना करें कि १०० की संख्या उत्कृष्ट है और दो की संख्या जघन्य है, तो ३ से लेकर ९९ तक की संख्या मध्यप संख्यात हैं।
(३) उत्कृष्ट संख्यात-दो से लेकर दहाई, सैकड़ा, हजार, लाख, करोड़ शीर्ष प्रहेलिका आदि राशियों जो माता ब्रह्माने में राक्षा में उसने मसी सख्या गिनती से न बता पाने के कारण उस संख्या को उपमा से बता पाना ही शक्य हैं। इसलिए उपमा का आधार लेकर ही संख्यात के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
शास्त्र में सत्-असत् दो कल्पना होती है। कार्य में परिणत होने वाली को सत् तथा न होने वाली को असत् कहते हैं। यहाँ असत् कल्पना से ऊपरोक्त चार पल्यों यथा अनवस्थित, शलाकादि के आधार पर उत्कृष्ट अनवस्थित संख्यात का स्वरूप बताया गया है।
अब असंख्यात का निरूपण किया जाता है।
असंख्यात निरूपण-गाथा १३७ में तीन प्रकार के असंख्यात बताये गये हे- १. परीत-असंख्यात २. युक्त-असंख्यात तथा ३. असंख्यात-असंख्यात। इन तीनों के भी तीन-तीन प्रकार हैं, जिनका उल्लेख किया गया है।
१. परीतअसंख्यातनिरूपण-पूर्वचर्चित उत्कृष्ट संख्यात में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य परीतअसंख्यात होता है।
(२) उसके बाद जब तक उत्कृष्ट-परीत-असंख्यात न बने तब तक की मध्य की सारी ही संख्या मध्य परीत-असंख्यात है।
(३) उत्कृष्ट परीत-असंख्यात बनाने की विधि या उत्कृष्ट परीत-असंख्यात परिमाण का जघन्य परीत-असंख्यात राशि को जघन्य परीत-असंख्यात राशि से परस्पर अभ्यास मुणित करके उसमें से एक कप करने पर उत्कृष्ट परीत-असंख्यात का परिमाण होता है।
जिस संख्या का अभ्यास गणित करना है, उसे उसी संख्या से उतनी ही बार गुणित करना होता है उदाहरण के लिए उसे ५ मान लें, इस ५ को ५ से ५ मार गुणा करने पर (५४५४५४५४५-३१२५) जो संख्या बनेगी इसमें से एक कम करने पर (३१२४) उत्कृष्ट परीत-असंख्यात बनता है। यदि उसमें से एक कम न किया जाय तो वह जघन्ययुक्तअसंख्यात रूप मानी जायेगी।
२. युक्त असंख्यात निरूपण-(१) जघन्य परीत-असंख्यात का जघन्य परीतअसंख्यात से अभ्यास करने पर प्राप्त संख्या जघन्ययुक्तअसंख्यात है- जैसा