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जीवसमास द्रव्यार्थिक नय में सम्मिलित करते हैं। सिद्धसेन के अनुसार पर्यायार्थिक नय भी तीन ही हैं। परन्तु जिनभद्र गणि के मत का अनुसरण करने वाले सैद्धान्तिक द्रव्यार्थिक नय के चार भेद मानते हैं। वे भी ऋजुसूत्र नय को द्रव्यार्थिक मानते हैं। (विशेषावश्यक, भाष्य गाथा-१५५०)।
(१) नैगम नय-दो पर्यों, दो द्रव्यों तथा द्रव्य और पर्याय का प्रधान और गौणभाव से विवक्षा करने वाले नय को नैगम नय कहते हैं। नैगम नयनएकम् एक नहीं अर्थात् अनेक गमों अर्थात् बोधमार्गो (विकल्पों) से वस्तु को जानता है। (रत्नाकरावतारिका, अध्याय ७, सूत्र ७)
जो अनेक दृष्टियों से वस्तु को जानता है अथवा अनेक भावों से वस्तु का निर्णय करता है उसे नैगम नय कहते हैं।
निगम नाम जनपद अर्थात् देश का है उसमें जो शब्द जिस अर्थ के लिए नियत है वहाँ पर उस अर्थ और शब्द के सम्बन्ध को जानने का नाम नैगम नय हैं अर्थात इस शब्द का वाच्य यह अर्थ है और इस अर्थ का वाचक यह शब्द हैं, इस प्रकार वाच्य-वाचक के सम्बन्ध के ज्ञान को नैगम नय कहते हैं। (तत्त्वार्थ सूत्र- अध्ययन १)
तत्र संकल्पमात्रस्य ग्राहको नैगम नयः। निगम का अर्थ है संकल्प, जो निगम अर्थात् संकल्प को विषय करके कहे वह नैगम नय कहा जाता है- जैसे “कौन जा रहा है, यह पूछे जाने पर "मैं जा रहा हूँ" यह उत्तर दिया जाता है यहां पर कोई भी जा नहीं रहा किन्तु जिसने जाने का केवल संकल्प ही किया है वह नैगम नय की अपेक्षा से कहता है कि मैं जा रहा हूँ। (न्याय प्रदीप)
__ शब्दों के जो-जो अर्थ लोक में माने जाते हैं उनको समझने की दृष्टि नैगम नय है। इस दृष्टि से यह नय अन्य सभी नयों से अधिक विषय वाला है।
नैगम नय पदार्थ को सामान्य, विशेष और उपयात्मक मानता है। वह तीनों कालों, चारो निक्षेपों एवं धर्म और धर्मी दोनों का ग्रहण करता है। यह नय संकल्प के आधार पर साध्य का प्रतिपादन कर देता है जैसे किसी मनुष्य को स्तम्भ बनाने की इच्छा हुई। तब वह जंगल में काष्ठ लाने के लिए गया। मार्ग में किसी ने उससे प्रश्न किया कि कहाँ जा रहे हों? उसने उत्तर दिया कि स्तम्भ लाने के लिए जा रहा हूँ। बिना लकड़ी प्राप्त किये और बिना स्तम्भ बनाये- केवल संकल्प के आधार पर ही उसने कह दिया कि स्तम्भ लेने जा रहा हूँ। इस प्रकार वस्तु के संकल्प को ही वस्तु मान लेना नैगम नय का अभिप्राय है।