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जीवसभास
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५. जीवद्रव्य का परिमाण
गुणस्थानों की अपेक्षा से जीवद्रव्य का परिमाण
परिमाण की सामान्य चर्चा द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव की अपेक्षा से गाथा ८७ से १४३ तक को जा चुकी हैं। अब जीवद्रव्य के परिमाण की चर्चा करते हैं
मिध्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों का परिमाण
मिच्छादवमणता कालेणोसप्पिणी अनंताओ ।
खेतेन मिज्जमाणा हवंति लोगा अणंताओ ।। १४४ । ।
गाथार्थ - मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्य की अपेक्षा से अनन्त हैं, क्षेत्र की अपेक्षा से लोकाकाश के अनन्त प्रदेशों के समतुल्य हैं तथा काल की अपेक्षा से अनन्त उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी काल के समयों के समतुल्य हैं।
विवेचन - मिध्यादृष्टि जीव द्रव्य की अपेक्षा अनन्त हैं। क्षेत्र की दृष्टि से लोकाकाश के अनन्त आकाश-प्रदेशों जितने है। काल की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि जीव अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल के समयों की संख्या के जितने है ।
यहाँ भाव परिमाण की चर्चा नहीं की गई क्योंकि द्रव्य, क्षेत्र और काल की अपेक्षा से जीवद्रव्य की गिनती की जा सकती हैं परन्तु भाव- अन्तरंग का विषय होने से उसकी गिनती नहीं की जा सकती। अतः उसे अलग से नहीं कहा गया हैं। पुनः एक अन्य अपेक्षा से यहाँ भाव का सम्बन्ध प्रत्येक अनन्त जीव द्रव्यो की अनन्तानन्त पर्यायों से हैं अतः उनकी समतुल्यता बताना कठिन हैं। सास्वादन तथा मिश्र गुणस्थानवर्ती जीवों का परिमाण
एगाईया भज्जा सासायण तहय सम्ममिच्छा य ।
उक्कोसेणं दुहवि मल्लस्स असंखभागो व ।। १४५ ।।
गाथार्थ – सास्वादन तथा सम्यक् मिथ्यादृष्टि अर्थात् मिश्रदृष्टि जीव (अधुव
होने से ) कभी होते हैं तथा कभी नहीं भी होते हैं। यदि होते हैं तो दोनों ही (सास्वादन एवं मिश्रदृष्टि जीव) एक, दो, तीन से लेकर उत्कृष्ट अर्थात् अधिकतम पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितने होते हैं।