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जीवसमास यह चर्चा एक समय की अपेक्षा से की गई अब भित्र-भिन्न समयों में क्षपक श्रेणी में प्रवेश करने वालों की अपेक्षा से विवेचन किया जायेगा।
आपक- यहाँ क्षपक श्रेणी का काल (अद्धा), असंख्यात समयात्मक अन्तर्मुहर्त के समतुल्य जानना चाहिए। अन्तर्मुहर्त प्रमाण क्षपक श्रेणी काल में एक समय में १०८, दूसरे समय में फिर १०८ जीव होते हैं। इस प्रकार अलग-अलग समय में प्रवेश करने वाले सभी क्षपको की संख्या मिलाएँ तो सम्पूर्ण अन्तर्मुहूर्त के समयों में समस्त मनुष्य क्षेत्र में कभी-कभी शतपृथकत्व क्षपक एवं क्षीणमोही होते हैं और कभी क्षपक श्रेणी से आरोहण करने वालों का अभाव भी होता है।
प्रश्न- अन्तर्मुहूर्त में असंख्यात समय होते हैं अत: असंख्यात जीव क्यो नहीं होते ?
इस शंका का समाधान पूर्व गाथा १४७ के अर्थ विवेचन में दिया गया है।
सयोगी केवली-गाथा में आगे सयोगी केवलियों का परिमाण या संख्या बताते हैं। सयोगी केवली (महाविदेह क्षेत्र में) सदा रहते हैं। इनका व्यवच्छेद (विरह) नहीं होता। सामान्यतः इनकी संख्या पन्द्रह कर्मभूमियों में न्यूनतम तथा अधिकतम करोड़ पृथकत्व अर्थात् दो करोड़ से नौ करोड़ के बीच होती है।
अयोगी केवली- अयोगी केवली तो कभी होते हैं कभी नहीं होते हैं। यदि होते हैं तो न्यूनतम एक तथा अधिकतम संख्यात होते हैं।
इस प्रकार चौदह जीव समास अर्थात् चौदह गुण स्थानों की अपेक्षा से जीव द्रव्यों का परिमाण बतलाया गया है। आगे नरक आदि गतियों की अपेक्षा से उनका परिमाण बताते है। नरकगति
पडमाए असंखेज्जा सेढीओ सेसियासु पुडवीसु ।
सेडी असंखभागी हवंति मिच्छा उ नेरइया ।।१४९।। गाथार्थ-प्रथम नरक में असंख्यात श्रेणी परिमाण नारकी जीव हैं। शेष छ; नरकों में प्रत्येक श्रेणी के असंख्यातवें भाग जितने मिथ्यादृष्टि नारकी जीव होते हैं।
प्रश्न- श्रेणी किसे कहते हैं?
उत्तर- पञ्चम कर्मग्रन्थ की गाथा ९७ में कहा गया है कि लोक चौदह रज्जु जितना ऊँचा हैं। सामान्य बुद्धि से वह सात घन रज्जु परिमाण वाला है।