________________
परिमाण-द्वार
१३९ ये सभी प्रतर में अंगुल के संख्यातासंख्यात भाग का अपहरण करते है।
विवेचन - प्रश्न- कौन कितने भाग का अपहरण करता है?
पर्याप्त अंगुल के संख्यातवें भाग प्रतर का अपहरण करते हैं तथा अपर्याप्त अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण प्रतर का अपहरण करते हैं।
अर्थात् अंगुल परिभाषा श्रेष्का-प्रदेश के संख्यात भाग से घनीकृत लोक प्रतर का भागाकार करने से जितने प्रत्तर का क्षेत्रखण्ड आवे उसमें जितने परिमाण प्रदेश उतने सम्पूर्ण पर्याप्त द्वीन्द्रिय होते हैं अथवा सभी द्वीन्द्रिय पहले समय में प्रत्येक एक-एक प्रतर प्रदेश को अपहरे, दूसरे, तीसरे, चौथे समय में एक-एक प्रतर प्रदेश को अपहरे यावत् अंगुल श्रेणी प्रदेशों के संख्यातवें भाग में जितने प्रदेश होते हैं उतने समय मे सम्पूर्ण प्रतर को पर्याप्त द्वीन्द्रिय अपहरते हैं अथवा अंगुल श्रेणी प्रदेश का संख्यात भाग रूप खण्ड को एक-एक को दें तो सभी द्वीन्द्रिय पर्याप्त एक साथ एक ही समय में सम्पूर्ण प्रतर को अपहरते हैं। इन तीनो का आशय एक सा ही है। .
__इसी प्रकार अपर्याप्त द्वीन्द्रिय को भी जानना चाहिए। मात्र इतना अन्तर है कि वहाँ अंगुल श्रेणी प्रदेशों के संख्यात को जगह असख्यात भाग है क्योकि अपर्याप्त द्वीन्द्रिय असंख्यात गुणा है।
द्वीन्द्रिय के समान ही त्रीन्द्रिय, चतरिन्द्रिय तथा पञ्चेन्द्रिय (पर्याप्त-अपर्याप्त) को जानना। यद्यपि सभी में समानता है फिर भी सभी का अल्प-बहुत्व इस प्रकार है।
१. सबसे कम पर्याप्त चतुरिन्द्रिय, २. पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय उससे विशेषाधिक, ३. उससे पर्याप्त त्रीन्द्रिय विशेषाधिक, ४, उससे पर्याप्त द्वीन्द्रिय विशेषाधिक, ५. उससे अपर्याप्त पशेन्द्रिय असंख्यगुणा ६. चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, ७. त्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक तथा ८. उससे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक कहा है।
यहाँ पञ्चेन्द्रिय का परिमाण सामान्य से कहा है- संज्ञी तथा असंज्ञी के भेद से नहीं कहा है।
यहाँ अवस्थित (सदा रहने वाली) राशियों की चर्चा की अब अनवस्थित राशियों की चर्चा करते हैंअनवस्थित राशियाँ
मणुय अपज्जत्ताऽऽहार मिस्सवेउब्धि छेय परिहारा । सुहुमसरागोवसमा सासण मिस्सा य भणिज्जा ।।१६५।।