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क्षेत्र-द्वार
अब तीसरे क्षेत्रद्वार की चर्चा की जाती है
खेतं खलु आगासं तविवरीयं च होड़ नोखेत्तं ।
जीवा य पोग्गलावि प धम्माषम्मत्थिया कालो ।।१६८।।
गाथार्थ- क्षेत्र आकाश को कहते हैं। क्षेत्र से विपरीत नोक्षेत्र होते हैं। ये नोक्षेत्र है- जीव, पुदगल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा काल।
विवेघन-आकाश वह है जो अन्य द्रव्यों को अवकाश, अर्थात् स्थान देता है। जिसमें पदार्थों का विकास तथा विनाश होता हो, ऐसे आकाश द्रव्य को क्षेत्र कहा जाता है तथा उसमें रहने वाले पाँच द्रव्यों को क्षेत्री कहा गया है।
यह क्षेत्र का स्वरूप बतलाया गया। अब चौदह जीवसमासों का सत्प्ररूपणा आदि अनुयोगद्वारो से विचार किया जाता है। चतुर्गति जीवों का देहमान परिमाण नारकी
सत्त घणु तिम्नि रयणी छच्चेव य अंगुलाई उच्चस।
पडमाए पुडवीए बिउणा वितणां च सेसेसु ।। १६९।।
गाथार्थ- सात धनुष तीन हाथ छ: अंगुल की ऊँचाई प्रथम रत्नप्रभापृथ्वी (प्रथम नरक) के नारकी जीवों की है। उसके बाद शेष पृश्वियों के नारकी जीवों की ऊँचाई क्रमशः प्रथम से द्विगुणित-द्विगुणित है।
विवेचना--१. प्रथम नरक के नारकी जीवों के शरीर की ऊँचाई सात धनुष तीन हाथ छ: अंगुल अर्थात् सवा इकतीस हाथ ऊँचाई उत्सेधांगुल से जानना चाहिए। २. शर्कराप्रभा में पन्द्रह धनुष, ढाई हाथ। ३. बालुकाप्रमा में इकतीस धनुष एक हाथ। ४, पंकप्रभा में बासठ धनुष दो हाथ। ५, धूमप्रभा में सवा सौ धनुष। ६. तम:प्रभा में ढाई सौ धनुष। ७. अन्तिम नरक में पांच सौ धनुष परिमाण उत्कृष्ट ऊँचाई है। नरक नाम जघन्य ऊंचाई
उत्कृष्ट अंधाई १. रत्नप्रभा ३ हाथ
७१ धनुष ६ अंगुल