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परिमाण द्वार
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मनुष्य ही कर सकते हैं। अतः श्रेणी का काल असंख्य समय वाला होने पर भी उसमें श्रेणी आरोहण करने वाले मनुष्यों की संख्या संख्यात ही होगी असंख्यात नहीं । (ज्ञातव्य है - गर्भज पर्याप्ता मनुष्य की अधिकतम संख्या की चर्चा गाथा १५३ में की गई है। )
अतः यह निश्चित हुआ कि अपूर्वकरण, अनिवृत्तिबादरसम्पराय और सूक्ष्मसम्पराय इन तीन गुणस्थानों में प्रत्येक के अन्दर एक साथ एक ही समय में प्रवेश वाले जीव कम से कम एक और अधिकतम चौपन कभी-कभी अपेक्षा से होते हैं। हैं। अलग-अलग समय में प्रवेश वालों की अपेक्षा से तो अधिकतम किसी समय में संख्यात जीव भी होते हैं। उपशान्तमोह गुणस्थान के विषय में भी इसी प्रकार से जानना चाहिये। आगे क्षपक एवं क्षीणमोही गुणस्थानवर्ती का परिमाण कहते हैं
क्षपक, क्षीणमोह एवं सयोगी केवली जीवों की संख्या
खवगा उ खीणमोहा जिणा उ पविसन्ति जाव अट्ठसवं ।
अाए सयपुत्तं कोडिपुहुतं सजोगीणं ।। १४८ ।।
गाथार्थ - क्षपक और क्षीणमोही जीव जब क्षपक श्रेणी में प्रवेश करते हैं तो उनकी संख्या १ से लेकर अधिकतम १०८ हो सकती है। क्षपणकाल में अधिकतम जीवों की संख्या शतपृथकत्व अर्थात् कम से कम दो सौ तथा अधिकतम नौ सौ होती हैं। सयोगी केवली कोड़ पृथकत्व अर्थात् कम से कम दो करोड़ और अधिकतम नौ करोड़ होते हैं।
विवेचन श्रेणी से आरोहण करने वाले क्षपक तथा क्षीणमोही कभी होते हैं तथा कभी नहीं होते हैं। इसका कारण है कि क्षपक श्रेणी से आरोहण की क्रिया सदैव हो यह आवश्यक नहीं है। जब होती है तब क्षपक श्रेणी में एक साथ एक समय में न्यूनतम एक तथा अधिकतम एक सौ आठ की संख्या होती है।
ये जीव अपूर्वकरण, अनिवृत्ति बादर सम्पराय तथा सूक्ष्म- सम्पराय गुणस्थानों में क्षायिक श्रेणी से आरोहण करने के कारण क्षपक कहे जाते हैं। छद्यावस्था में सबसे अन्तिम गुणस्थान क्षीणमोह का है। मोहनीयकर्म का सम्पूर्ण क्षय हो जाने के कारण इसे क्षीणमोह कहा गया है।
प्रश्न- एक समय में प्रवेश करने वाले जीव एक सौ आठ ही होते हैंअधिक नहीं, ऐसा किस आधार पर कहा गया ?
उत्तर - क्षपक श्रेणी में एक समय में अधिकतम एक सौ आठ जीव ही आरोहण करते हैं, ऐसा आगमवचन है।