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जीवसमास
: घट, पट आदि द्रव्यों को देखता है।
१. चक्षुदर्शन २. अचक्षुदर्शन : घटादि पदार्थों में चक्षु इन्द्रिय के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियों के ससेष संयोग आदि का अनुभव करता है।
३. अवधिदर्शन सभी रूपी द्रव्यों का अनुभव करता है किन्तु उनकी सभी पर्यायों की अनुभूति नहीं कर पाता हैं।
४. केवल दर्शन: सभी द्रव्यों तथा उनकी सभी पर्यायों का प्रत्यक्ष अनुभव करता है।
चारित्रगुण – चारित्रगुण पांच प्रकार का है, १ सामायिक चारित्र, २. छेदोपस्थापनीय, ३. परिहारविशुद्धि चारित्र, ४. सूक्ष्मसम्पराय चारित्र तथा ५. यथाख्यात चारित्र ।
इनमें सामायिक आदि पांचों चारित्रों के दो-दो भेद हैं
१. सामायिक चारित्र के
२. छेदोपस्थापनीय चारित्र के ३. परिहारविशुद्धि चारित्र के
४. सूक्ष्मसम्पराय चारित्र के ५. यथाख्यात चारित्र के
च्यावत
२.
कथित ।
२. निरविचार |
२ निर्विष्टकायिक |
९. इत्वरिक और
१. सातिचार और १. निर्विश्यमानक और
१. संक्लिश्यमानक और १. प्रतिपाती और
२. विशुद्धयमानक । २. अप्रतिपाती अथवा
१. छायस्थिक और
२. कैवलिक
१. सामायिक चारित्र - " सम्” उपसर्ग पूर्वक गत्यर्थक "अय" धातु से स्वार्थ में "इक" प्रत्यय लगाने से सामायिक शब्द निष्पन्न होता है। सम् अर्थात् समत्व या एकत्व और "आय' अर्थात् आगमन। जिसमें परद्रव्यों से निरपेक्ष समत्व रूपी उपयोग में आत्मा की प्रवृत्ति होती है वह सामायिक है, अथवा 'सम्' का अर्थ है राग-द्वेष रहित मध्यस्थभाव, उसकी 'आय' अर्थात् प्राप्ति है। समभाव की प्राप्ति ही जिसका प्रयोजन है उसे सामायिक कहते हैं, अथवा सम का अर्थ हैं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र । अतः इनकी आय अर्थात् लाभ को भी सामायिक कहते हैं। सर्वसावध कार्यों से निवृत्ति (विरति ) भी सामायिक है क्योंकि महाव्रतों को स्वीकार करने के पूर्व सभी सावद्य कार्य योगों से निवृत्ति रूप सामायिक चारित्र ग्रहण किया जाता है।
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इसके दो भेद हैं- इत्वरिक व यावत्कथित |
१. इत्वरिक अल्पकालीन एवं २ यावत्कालिक आजीवनपर्यन्त । इत्वरिक सामायिक चारित्र गृहस्थ ग्रहण करते हैं। यावत्कथित सामायिक चारित्र भरत, ऐरावत