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जीवसमास
अब गणितीय संख्या के विषय में चर्चा करेंगे
संखेज्जमसंखेज्जं अनंतयं चेव गणणसंखाणं ।
संखेज्जं पुण तिविहं जहणणयं मज्झिमुक्कोसं ।। १३६ ।।
गाथार्थ - गणितीय संख्या संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त ऐसी तीन प्रकार को है। पुनः संख्यात संख्या भी जघन्य, मध्यम तथा उत्कृष्ट के भेद से तीन प्रकार की है।
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तिविहमसंखेज्जं पुण परित जुतं असंख्यासंखं ।
एक्केक्कं पुण तिविहं जहण्णयं मज्झिमुक्कोसं ।। १३७ ।।
गाथार्थ - इसी प्रकार असंख्यात संख्या भी तीन प्रकार को है- परीत असंख्यात, युक्तअसंख्यात तथा असंख्यात असंख्यात । इन तीनों के भो पुनः तीन-तीन प्रकार हैं- जघन्य, मध्यम तथा उत्कृष्ट । इस तरह से असंख्यात के निम्न नौ भेद है- १. जघन्थ परीत- असंख्यात २ मध्यम परात असंख्यात, ३. उत्कृष्ट परीत- असंख्यात, X. जघन्य युक्त असंख्यात, ५. मध्यम युक्त असंख्यात ६. उत्कृष्ट युक्त असंख्यात ७ जघन्य असंख्यात असंख्यात ८. मध्यम असंख्यात असंख्यात और ९. उत्कृष्ट असंख्यात असंख्यात ।
तिविहमणतंपि तह, परित्त जुत्तं अणतयाणंतं ।
एक्केक्कं मिय तिविहं जहणणयं मज्झिमुक्कोसं । ।१३८ ।।
गाथार्थ - अनंत भी तीन प्रकार की संख्या वाला है-- परीत- अनंत, युक्त - अनंत तथा अनंतानंत। इनमें से प्रत्येक के भी तीन-तीन भेद होते हैं। जघन्य मध्यम तथा उत्कृष्ट इस प्रकार अनन्त के भी नौ भेद होते हैं।
प्रस्तुत गाथा में अनन्त के नौ भेद बताये गये हैं, परन्तु व्याख्या करने पर प्रथम दो अर्थात् परीत- अनन्त और युक्त-अनन्त के तो तीन-तीन भेद स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है किन्तु तीसरे अनतानंत के जघन्य एवं मध्यम दो भेद ही मानना चाहिये, क्योंकि उत्कृष्ट अनंतानंत ऐसी कोई वस्तु होना संभव नहीं है अतः उसको स्वीकार न करने से अनंत के आठ प्रकार ही मानना चाहिये।
संख्यास का स्वरूप
जंबुद्दीवो सरिसवपुण्णो ससलागपडि (मह) सलाग्राहि । जावइअं पडिपूरे तावइअं होड़ संखेज्जं ।। १३९।।
गाथार्थ - जम्बु द्वीप के समान आकार वाले १. अनवस्थित, २. शलाका, ३. प्रतिशलाका, तथा ४. महाशलाका- ऐसे चार प्याले हों, जब वे प्याले सरसों