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परिमाण-द्वार
१०१ से पूर्ण रूप से भर जाय तब उन सरसों के दानों की संख्या उत्कृष्ट संख्यात होती है।
संख्यात निरूपण-जम्बूद्वीप जैसे आकार के चार पल्यों के नाम क्रमश: १. अनवस्थित, २. शलाका, ३.शालाका और महापालामा है। नारों पल्ला गहराई में एक हजार योजन परिमाण समझने चाहिये। इन्हें शिखा पर्यन्त सरसों से पूर्ण भरने का विधान है।
शास्त्र में सत् और असत् दो प्रकार की कल्पना होती है जो कार्य में परिणत की जा सके वह सत्कल्पना तथा जो कार्य में परिणत न की जा सके वह असस्कल्पना। पल्यों का विचार असत्कल्पना है। इसका प्रयोजन उत्कृष्ट संख्यात का स्वरूप समझाना मात्र है।
शास्त्र में पल्य चार कहे गये है जिनके नाम ऊपर बता दिये हैं। इनकी लम्बाई-चौड़ाई जम्बूद्वीप के बराबर एक-एक लाख योजन की है। गहराई एक हजार योजन की है। ऊंचाई पावर वेदिका परिमाण अर्थात् साढे आठ योजन कही गई है। पल्य की गहराई तथा ऊँचाई मेरु को समतल भूमि से समझना चाहिये। सारांश यह है कि ये कल्पित पल्य तल से शिखा तक १००८६ योजन होते हैं।
अनवस्थित पल्य अनेक बनते हैं। इनकी लम्बाई-चौड़ाई एक सी नहीं हैं। यही कारण है कि इन्हें अनवस्थित कहा जाता है, पहले अनवस्थित (मूलानवस्थित) की लम्बाई-चौड़ाई लाख योजन की है और आगे के सब अनवस्थित पल्यों की लम्बाई-चौड़ाई उससे अधिकाधिक है। जैसे जम्बूद्वीप परिमाण मूलानवस्थित पल्य को सरसो से भर देना और जम्बूद्वीप से लेकर आगे के प्रत्येक द्वीप-समुद्र में एक-एक सरसों डालते जाना। इस प्रकार डालते-डालते जिस द्वीप या समुद्र में मूलानवस्थित पल्य खाली हो जाय- जम्बूद्वीप (मूलानवस्थित) से उसी द्वीप या उस समुद्र तक की लम्बाई-चौड़ाई वाला नया पल्य बना लिया जाय, यह पहला उत्तरानवस्थित पल्य है।
इस पल्य को पूर्ण रूप से सरसों से भरना और इन सरसों में से एक-एक सरसों को आगे के प्रत्येक द्वीप में तथा समुद्र में डालते जाना। डालते-डालते जहां सरसों के दाने समाप्त हो जाय, उस द्वीप या समुद्र पर्यन्त लम्बा चौड़ा पल्य फिर से बना लेना यह दूसरा उत्तरानवस्थित पल्य है।
इस प्रकार क्रमश: अनवस्थित पल्य बनाते जाना- यह पल्य कब तक बनाना? – इसके उत्तर में बताया गया कि प्रत्येक अनवस्थित के खाली होने पर एक-एक सर्षप शलाका पल्य में डालते जाना। इससे यह ज्ञात होगा कि कितने