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सत्पदप्ररूपणाद्वार
४१ ५. वामन संस्थान-जिस शरीर में छाती, पेट, पीठ आदि अवयव पूर्ण हों परन्तु हाथ पैर आदि अवयव छोटे हों उसे 'वामन संम्णान' कहते हैं।
६. हुण्डक संस्थान- जिस शरीर के समस्त अवयव टेढ़े-मेढ़े हो अर्थात् एक भी अवयव शास्त्रोक्त प्रमाण के अनुसार न हो, उसे 'हुपडक संस्थान' कहते है।
(जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश) (ठाणांग ६ सूत्र ४९५) (कर्मग्रन्थ भाग १ पृ. ४०) (प्रवचनसारोद्धार-गाथा १२६८)
विशेष-समस्त गर्भज जीवों अर्थात् मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों के छ; संस्थान होते हैं। देवों का समचतुरस्त्र संस्थान होता है तथा विकलेन्द्रिय जीवों एवं नारकी जीवों का हुण्डक संस्थान होता है।
एकेन्द्रिय जीवों का संस्थान इन छहों संस्थानों से भिन्न होता है, अत: उसका विवेचन अगली गाथा में किया गया है। एकेन्द्रिय के संस्थान
मस्सूरए य थियुगे सूइ पड़ागा अणेगसंठाणा ।
पुढविदगअगणिमारुपवणस्सईणं च संठाणा ॥५२।। गाथार्थ- पृथ्वीकाय का संस्थान (आकार) मसूर की दाल के समान, अपकाय का बुदबुदे के समान, तेजस्काय का सूई के समान, वायुकाय का पताका के समान तथा वनस्पतिकाय अनेक संस्थान वाली होती है।
विवेचन-पृथ्वीकाय का आकार चन्द्र या मसूर की दालवत् और अप्काय का आकार बुदबुदे जैसा बताया गया है। तेजस्काय को (अग्नि ऊंची उठने पर नुकीली हो जाती है, अत: सूई के आकार का बताया गया है। इसी प्रकार वायुकाय को पताका के आकार का एवं वनस्पतियों को अनेक प्रकार का होने से अनेक संस्थान वाला कहा गया है। ५. शरीर
ओरालिय वेडब्बिय आहारय तेथए य कम्मयए । पंच मणुएस चउरो वाऊ पंचिदियतिरिक्खं ।। ५३।। वेउब्जियतेए कम्मए य सुरनारयाय तिसरीरा ।
सेसेमिंदिग्रवियला ओरलियतेयकम्ममा ।। ५४।।
गाथार्थ-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस् तथा कार्मण- ये पाँच शरीर हैं। इनमें से मनुष्यों में (विशिष्ट अवस्था में) पाँच शरीर तथा तिर्यश्च पझेन्द्रिय