________________
जय
जीवसमास बालाग्र होता है। ऐसे आठ बालाग्न से भरत-ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यों
का एक बालाग्र होता है। बालान से तात्पर्य है बाल का अग्रभाग। लीख : भरत ऐरावत के मनुष्य के आठ बालान परिमाण एक लीख
होती है। नँ' : आठ लीख परिमाण एक जू होता है।
: आठ जूं परिमाण एक जव (जौ- धान्यविशेष) होता है। अड्डेव य जवममाणि अंगुलं छच्च अंगुला पाओ। पाया य दो विहस्थी दो य विहस्थी भवे हत्थो।।१९।।
गाथार्थ-आठजव से एक अंगुल बनता है। छ: अंगुल से एक पाद बनता है। दो पाद से एक वितस्ति (बेत) तथा दो वितस्ति से एक हाथ बनता है।
विवेचन- आठ जब का एक अंगुल होता है। यह अंगुल उत्सगुल कहलाता है। ऐसे छ: अंगुलों से एक पाद बनता है। पुनः दो पाद की एक बालिश्त और दो बालिरत का एक हाथ होता है।।
बउहत्थं पुण अणुयं दुनि सहस्साई गाउयं तेसि । धत्तारि गाउया पुण जोयणमेगं मुणेयव्यं ।।१०।। उस्सेहंगुलमंगं हवइ पमाणंगुलं दुपंचसयं ।
ओसप्पिणीए पढमस्स अंगुलं चक्कवहिस्स ।। १०१।।
गाथार्थ-चार हाथ का एक धनुष होता है। दो हजार हाथ का एक गाऊ (कोस) होता है। पुन: चार गाऊ (कोस) का एक योजन जानना चाहिये।।१००1।
एक उत्सेधांगुल को हजार से गुणा करने पर एक प्रमाणांगुल बनता है। यह प्रमाणांगुल अवसर्पिणी के प्रथम चक्रवर्ती की अंगुली के परिमाप वाला जानना चाहिए।।१०१!। विवेचन
प्रमाणांगुल- उत्सेधांगुल को हजार से गुणित करने पर एक प्रमाणांगुल बनता है। यह भरतचक्रवर्ती की अंगुली के परिमाप का होता है।
योजन- छ: प्रमाणांगुल से भरतचक्रवर्ती का मध्यतलरूप भाग (पाद) होता है। दो पाद की एक वितस्ति (बेत) होती है। दो वित्तस्ति का एक हाथ होता हैं। चार हाथ का एक धनुष होता है। हजार धनुष का एक गाऊ तथा चार गाऊ का एक योजन होता है। यह योजन प्रमाणांगुल से बना हुआ है।